सूखे का असर, पांच महीने पहले आ गया पतझड़!

हरिओम गौड़, श्योपुर। इस साल श्योेपुर जिले में बारिश बेहद कम हुई है, इसीलिए जिला प्रशासन ने श्योपुर को जल अभाव ग्रस्त और प्रदेश सरकार ने जिले को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है। हालात यहां तक बिगड़ चुके हैं कि कई गांवों में कोसों दूर तक पीने का पानी नहीं इसलिए, ग्रामीण पलायन को मजबूर हैं। बिना पानी के गांवों की जनता ही नहीं पेड़ों के पत्ते भी पलायन करने लगे हैं।


जंगलों में लगे 60 फीसदी से ज्यादा पेड़ों के पत्तों ने अभी से उनका साथ छोड़ दिया है। जबकि जिले का जंगल सर्दी के सीजन में पूरी तरह हरा-भरा रहता है। इस साल जंगल की नदियां, तालाब व अन्य जलस्त्रोत सूखे पड़े हैं। जंगल में पेड़ों की सूखी टहनियां और जमीन पर बिखरे सूखे पत्ते बयां कर रहे हैं कि इस साल पतझड़ का मौसम पांच महीने ही आ गया। आमतौर पर पतझड़ का सीजन मार्च के अंत या फिर अप्रैल महीने के शुरुआत में दस्तक देता है।


और तब पतझड़ का मौसम ही ड्रॉप हो गया

मौसम के मिजाज अब एक जैसे नहीं रहे। कड़ाके की ठंड में भी बारिश हो जाती है और सर्दी के दिनों में भी गर्मी पसीने छुड़ाने लगती है। बार-बार हो रहे मौसम में बदलाव का खामियाजा जंगल और हरियाली को भुगतना पड़ रहा है। इस साल कम पानी के कारण पतझड़ का सीजन पहले आ गया है। दो साल पहले 2015 में ऐसा हुआ था जब, गर्मी और सर्दी के सीजन में भी महीने में दो या तीन बार बारिश हुई थी। 12 महीने बारिश का असर भी जंगल पर दिखा था। 2015 में पतझड़ का मौसम ही नहीं आया। मार्च से लेकर जुलाई-अगस्त तक पेड़-पौधे हरे-भरे रहे।


बे-मौसम आ रहे जंगली फल

तेंदू का फल चिलचिलाती गर्मियों के दिनों में आता है। लेकिन इस बार यह जंगली फल बेमौसम उग आया है। कराहल और विजयपुर के जंगलों में तेदू के पेड़ों की भरमार है। कई पेड़ों पर फल लटक रहे हैं। लेकिन यह फल पककर अपने मूल रूप सिंदूरी रंग में नहीं आ रहे। इनका आकार भी बढ़ गया है।


आदिवासियों और मवेशियों की होगी फजीहत

सर्दी शुरू होने से पहले ही जंगल के सूख जाने के कारण जिले के आदिवासी परिवारों के साथ-साथ मवेशियों की सबसे ज्यादा फजीहत होगी। गौरतलब है कि, जिले की कुल जमीन के 60 फीसदी हिस्से पर जंगल है। इस जंगल से जिले में बस रहे आदिवासी समुदाय की प्रमुख आजीविका जुड़ी है। जंगल के पेड़-पौधे समय से पहले सूख जाने के कारण मवेशियों को चारे का संकट होगा क्योंकि, ग्रामीण क्षेत्रों की हजारों गाय, भैंस, बकरी व अन्य मवेशी पूरी तरह जंगल पर ही निर्भर हैं।


मौसम के आए बदलाव का असर

बारिश कम होने के साथ-साथ इस बार अक्टूबर महीने के अंत तक तापमान भी बढ़ा हुआ रहा है। अक्टूबर में गर्मी ज्यादा रहने और पानी की कमी के कारण ही पेड़ों में यह दुष्परिणाम रहे हैं। इन्हीं दोनों कारणों के कारण पेड़ों के पत्ते भी जल्दी गिर गए और कई पेड़ों में बेमौसम फल उग रहे हैं।

डॉॅक्टर कृष्णमोहन मुदगल पर्यावरण विशेषज्ञ

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