महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में चल रहे किसान आंदोलन की लपटें हरियाणा तक भी पहुंच सकती हैं। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) की राज्य इकाई ने इन तीनों राज्यों के किसान आंदोलन का समर्थन किया है। यही नहीं, भाकियू प्रदेशाध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी शुक्रवार को नयी दिल्ली में होने वाली किसानों की राष्ट्र स्तर की बैठक में भाग लेंगे। इसके बाद वे हरियाणा यूनिट की मीटिंग करके आंदोलन की रणनीति तय करेंगे।
वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों ने भी किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए केंद्र व राज्य की भाजपा सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। भाकियू का कहना है कि किसानों की कर्जा माफी और स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू किए जाने की मांग को लेकर हरियाणा के किसान भी आंदोलन कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में किसानों पर हुई फायरिंग के विरोध में भाकियू ने किसानों को साथ लेकर बृहस्पतिवार को कुरुक्षेत्र में केंद्र सरकार का पुतला भी फूंका।
भाकियू के प्रदेश प्रवक्ता राकेश बैंस का कहना है कि भाकियू अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी दिल्ली की मीटिंग में भाग लेने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली से लौटने के बाद प्रदेश इकाई की बैठक बुलाई जाएगी ताकि राज्य में आंदोलन की रूपरेखा तय की जा सके। उन्होंने कहा कि आज किसानों के सामने भूखे मरने की नौबत आ चुकी है। कर्जे के बोझ तले किसान आत्महत्या कर रहे हैं। किसानों को उनकी फसलों का लागत मूल्य भी नहीं मिल रहा है। ऐसे में उन्हें अपने उत्पाद सड़कों पर फेंकने पड़ रहे हैं।
पूर्व सीएम ने मांग का समर्थन किया
पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने किसानों की मांग का समर्थन करते हुए कहा, भाजपा ने लोकसभा चुनाव में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने का वादा किया था। सत्ता में आने के बाद रिपोर्ट लागू करने की बजाय सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर यह कह दिया कि इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया जा सकता। अपनी ही अध्यक्षता वाली मुख्यमंत्रियों के वर्किंग समूह की रिपोर्ट मीडिया को दिखाते हुए हुड्डा ने कहा, हमने भी किसानों की लागत पर 50 प्रतिशत मुनाफा दिए जाने की सिफारिश की थी।
वहीं विधानसभा में विपक्ष के नेता अभय चौटाला ने कहा, मध्य प्रदेश के किसानों की पिछले वर्ष अच्छे मानसून की वजह से उत्पादकता बढ़ी थी, परंतु इसके बावजूद उन्हें भारी घाटा उठाना पड़ा। चूंकि सरकार ने उनकी फसल को समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदा। परिणामस्वरूप किसान मंडियों में अपनी फसल को औने-पौने दामों पर बेचने के लिए मजबूर हो गए। उन्होंने कहा कि इससे पहले के 2 वर्षों में मध्य प्रदेश के किसानों को लगातार सूखे का सामना करने की वजह से भारी घाटा उठाना पड़ा था।