कलिखो के सुसाइड नोट का बम– योगेन्द्र यादव

दिल्ली में सत्ता के गलियारों में खुसर-फुसर चल रही है. एक विधवा साठ पेज का बम लेकर घूम रही है. धुआं निकल रहा है. न कोई अपनी आंख हटा पा रहा है. न ही कोई छूने की हिम्मत कर रहा है. हर कोई सोच रहा है कि बम फटेगा तो किसका नंबर आयेगा.

ईटानगर हो या दिल्ली, सरकार हो या न्यायपालिका, किसी से भी अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल का सुइसाइड नोट न निगलते बन रहा, न उगलते बन रहा है. छत से लटकते कलिखो पुल के शरीर के इर्द-गिर्द एक नोट की दस प्रतियां बिखरी मिली थीं. ‘मेरे विचार’ शीर्षक से हिंदी में टाइप किये साठ पेज के इस नोट के हर पन्ने पर पुल के हस्ताक्षर हैं.

यानी कि इसकी विश्वसनीयता संदेह से परे है. इस बम का असली बारूद बीच में है, जहां पुल सार्वजानिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार का खुलासा करते हैं. ‘मेरे विचार’ का बड़ा हिस्सा अरुणाचल में शीर्ष नेताओं के भ्रष्टाचार के किस्सों से भरा हुआ है. कहना मुश्किल है कि पुल भी दूध से धुले थे. इसलिए उनके कहे को पूरा सच मान लेना सही नहीं होगा. फिर भी उन्होंने राशन के चावल को बेचना, फर्जी ठेके, जाली और डबल बिल का पेमेंट, पकड़े जाने पर फाइलों को गायब करना व सैकड़ों करोड़ों के गबन के किस्सों को जितना विस्तार में बताया है, वह कोरी गप्प नहीं हो सकता.


कांग्रेस के साथ दो दशक रहने के बाद उनका निष्कर्ष उनकी अपनी कड़ुवाहट से भरा था, लेकिन झूठा नहीं लगता: ‘यह कांग्रेस पार्टी की नीति है कि कमजोर, भ्रष्ट, बदमाश और लुटेरों को ही प्राथमिकता देती है और उन्हें नेता बनाती है, ताकि वे सरकार और जनता के पैसों को लूट कर कांग्रेस आला कमान को पंहुचाते रहें, जिससे उनकी कमाई होती रहे.’ पुल के कहे पर विश्वास न भी किया जाये, तो भी जांच का आधार तो बनता है.

कलिखो पुल सुप्रीम कोर्ट के दो निवृतमान और दो वर्तमान जजों का नाम लेकर आरोप लगाते हैं कि राज्य से जुड़े कई मामलों में मोटी रिश्वत लेकर भ्रष्टाचार के कई मामलों को रफा-दफा किया गया. अरुणाचल प्रदेश में बर्खास्त कांग्रेस सरकार को पुनर्स्थापित करनेवाले केस में दो जजों के रिश्तेदारों की मार्फत पुल से 86 करोड़ की रिश्वत मांगी गयी थी.

पहली नजर में इस आरोप पर भरोसा करना कठिन है. इन चार जजों में से दो की छवि पैसे के लेन-देन के बारे में बेदाग रही है. फिर भी इन आरोपों की जांच करना जरूरी है, क्योंकि एक मृतक के आखिरी बयान या सूइसाइड नोट को कानून में साक्ष्य का दर्जा है. मामला देश की सर्वोच्च न्यायपीठ की साख का है.

पूछना चाहिए कि इन सब के बावजूद अब तक जांच क्यों नहीं हुई? पुल की आत्महत्या के बाद राज्यपाल द्वारा सीबीआइ जांच की सिफारिश के बाद भी जांच क्यों नहीं हुई? असली सवाल है कि जिस नोट में सिर्फ कांग्रेसियों के नाम हैं, उसकी जांच करवाने में बीजेपी सरकार क्यों आना-कानी कर रही है? इस सवाल पर सत्ता-तंत्र की चुप्पी के गहरे तार खुलने लगते हैं.


कलिखो पुल की आत्महत्या अगस्त में हुई,तभी यह नोट मिला और राज्यपाल ने केंद्र सरकार को सीबीआइ जांच की सिफारिश की. उन्हीं दिनों दिल्ली के कई पत्रकारों के पास बिड़ला-सहारा के जब्त कागज पहुंच रहे थे. अक्तूबर में प्रशांत भूषण ने बिड़ला-सहारा कागजों की जांच की मांग की. इन्हीं दिनों सरकार नये मुख्य न्यायधीश की नियुक्ति पर विचार कर रही थी. इस बीच खबर आयी कि दिल्ली के एक बड़े वकील के यहां छापा पड़ा और करोड़ों का अवैध कैश बरामद हुआ. सुनने में आया कि उस वकील ने कहा कि इस पैसे में एक बड़े जज के बेटे का हिस्सा है.

नवंबर-दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई. जैन- हवाला डायरी और अपने पुराने फैसलों को दरकिनार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सहारा-बिड़ला मामले में एक नयी व्याख्या देनी शुरू की और कहा कि ऐसी डायरी और कागजों की जांच नहीं की जा सकती. जनवरी में न्यायमूर्ति खेहर मुख्य-न्यायाधीश बन गये. कुछ दिन बाद बिड़ला-सहारा केस को एक नयी बेंच ने खारिज कर दिया. विपक्ष के नेता की असहमति के बावजूद प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायधीश की सहमति से सीबीआइ के नये निदेशक की नियुक्ति हो गयी. सुप्रीम कोर्ट और सरकार का गतिरोध समाप्त होने की खबरें आने लगीं.


हो सकता है इन घटनाओं में कोई संबंध न हो, लेकिन यह भी संभव है कि इस एक तार से दिल्ली दरबार के कई छुपे हुए भेद खुलने लगे. कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने विपक्ष के नेताओं को आगाह किया था कि वे उन सब की ‘जन्मपत्री’ रखते हैं. कहीं इसीलिए कलिखो पुल नामक बम को लेकर इतनी चुप्पी तो नहीं है? फिलहाल यह उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के दफ्तर में पड़ा है.


सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले के मुताबिक जजों के खिलाफ जांच का आदेश देने से पहले मुख्य न्यायाधीश की राय लेनी होती है. और अगर आरोप मुख्य न्यायाधीश पर हो, तो राष्ट्रपति अन्य जजों की राय लेंगे. इस बार चूंकि मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रपति दोनों का नाम है, इसलिए कलिखो पुल की विधवा ने उपराष्ट्रपति से न्याय की गुहार की है. देखना है कि वहां इस रहस्य का उद्घाटन होगा या कि इस पर ढक्कन लगा दिया जायेगा.

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