कोरबा। पहाड़ी क्षेत्रों में निवासरत कोरवा व बिरहोर आदिवासी परिवार के लोगों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए स्वरोजगार के तहत उन्हें कोसा उत्पादन से जोड़ा जा रहा है। एकीकृत आदिवासी परियोजना के तत्वावधान में रेशम विभाग से 100 परिवारों को प्रशिक्षित किया गया है। आगामी पुसल चक्र जून माह से कोसा उत्पादन कर सकें, इसके लिए रेशम विभाग से सामग्री आपूर्ति की जाएगी।
कोरवा और बिरहोर जनजाति के लोगों के जीवन स्तर में अब भी अपेक्षित सुधार नहीं है। उनकी दशा में सुधार लाने के लिए शासन ने अब नई योजना तैयार की है, जिसके तहत वनांचल क्षेत्र में निवासरत आदिवासियों को स्थानीय स्तर पर रोजगार प्रदान करना है। वनक्षेत्रों में कोसा उत्पादन की असीम संभावनाएं हैं। नर्सरी के माध्यम से विस्तृत पैमाने पर कोसा पुल का उत्पादन किया जा सकता है। रेशम विभाग ने जिन गांवों को चयन किया है उनमें प्रारंभिक तौर पर ग्राम कदमझरिया, जामभांठा, हरदीमौहा, देवदुआरी, टोकाभांठा व चुईया के रहवासी कोरवा-बिरहोर आदिवासियों को प्रशिक्षित किया गया है। करीब 46 हेक्टेयर भूमि पुसल के लिए प्रदान की गई है।
परियोजना प्रशासक मद से प्रशिक्षण के लिए 12 लाख 50 हजार की स्वीकृति दी गई है। विभागीय अधिकारी एके गढ़ेवाल ने बताया कि पिछड़ी जनजाति के लोगों का प्रशासनिक योजनाओं का लाभ दिलाने हर संभव प्रयास किया जा रहा है। हालांकि जितने आदिवासियों को योजना में जोड़ा जाना था, उसमें पूरी सफलता नहीं मिली है। आगे भी योजना का लाभ दिलाने का प्रयास जारी रहेगा। इस योजना में ज्यादा लोग जुड़ सकें, इसके लिए रेशम विभाग से आवश्यक सामाग्री दरी तिरपाल, गमबूट, टार्च, छतरी आदि की आपूर्ति की जाएगी। प्रशिक्षण अवधि में 200 रुपए प्रतिदिन के मान से भुगतान किया गया है।
विभागीय स्तर पर कोरवा व बिरहोर जनजाति के आदिवासियों को आत्मनिर्भर बनाने व्यावसायिक पैमाने पर कोसा उत्पादन के लिए "ङशिक्षित किया गया.
है। आगामी पुसल चक्र के तहत वे स्वयं कोसापुल उत्पादन कर सकेंगे, इसके लिए उन्हंे आवश्यक सामग्री उपलब्ध्ा कराई जाएगी।
– एके बाजपेयी, सहायक संचालक, रेशम