रूस भले ही भारत के दो बड़े दुश्मन देशों चीन और पाकिस्तान के साथ पींगें बढ़ा रहा हो, लेकिन भारत के साथ उसके रिश्तों के अलग मिजाज हैं। भारत जानता है कि वह अपनी सैन्य जरूरतों के लिए अब सिर्फ रूस के भरोसे नहीं रह सकता। ऐसे में भारत उसके साथ दोस्ती के नए आयाम खोजने में जुटा है।
इस सिलसिले में भारत ने रूस में बड़े पैमाने पर पट्टे पर जमीन लेकर वहां खेती करने की संभावना तलाशनी शुरू कर दी है। रूस के पास काफी खाली जमीन है। भारत को लग रहा है कि आने वाले दिनों में अनाज की जरूरतों को पूरी करने के लिए वहां खेती करने का तरीका एक बढ़िया नुस्खा हो सकता है।
सूत्रों के मुताबिक, रूस में पट्टे पर खेती करने का काम चीन पहले से ही कर रहा है। रूस की पूर्वी सीमा के पास चीन ने काफी सारी जमीन पट्टे पर ले रखी है। रूस खुद चीन को साइबेरिया और पूर्वी सीमा के राज्यों में कृषि में निवेश करने के लिए आकर्षित कर रहा है। भारत भी यह काम कर सकता है। इसके लिए रूस भी तैयार है। रूस की जमीन कुछ खास तरह के कृषि उत्पादों के लिए काफी उपजाऊ है।
भारत वहां खेती कर उत्पादों को अपने यहां ला सकता है। हाल ही में भारत और रूस के बीच गठित अंतर-मंत्रालयी आयोग की बैठक में इस पर बात भी हुई है। अक्टूबर में दोनों देशों के बीच होने वाली शीर्षस्तरीय बैठक में इस पर और विस्तार से बातचीत होगी।
भारत रूस के अलावा कुछ अन्य देशों में भी अनाज उपजाने की संभावना तलाश रहा है। हाल ही में भारत ने मोजाम्बिक और नामीबिया में दाल उत्पादन के लिए वहां की सरकारों से बात की है। कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत और चीन को आने वाले कुछ दशकों में अपनी जरूरत के अनाज का बड़ा हिस्सा दूसरे देशों में उपजाना पड़ेगा।
बढ़ती आबादी, जमीन की उर्वरा शक्ति में हो रहे क्षरण आदि की वजह से भारत के लिए भी अपनी घरेलू जमीन से पूरी आबादी का पेट भरना मुश्किल होगा। दाल और खाद्य तेल उत्पादन में यह स्थिति अभी ही बन गई है। भारत अपनी जरूरत का लगभग 60 फीसद खाद्य तेल बाहर से आयात कर रहा है। खाद्य तेल का उत्पादन दूसरे देशों में करने को भी भारत तैयार है। इसके लिए थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया के साथ चर्चा की जा रही है।