वाशिंगटन। भारत की साढ़े सात फीसद आर्थिक विकास दर बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई हो सकती है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की एक रिपोर्ट में भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों पर यह संदेह जताया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार आर्थिक सुधारों के अपने वादों को पूरा करने की दिशा में धीमी रही है। अलबत्ता, इसमें नौकरशाही और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) के क्षेत्र में बाधाओं को कम करने की दिशा में उठाए गए कदमों की तारीफ की गई है।
अमेरिकी विदेश विभाग के आर्थिक एवं कारोबार ब्यूरो की ओर से तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत की विकास दर सबसे तेज है। लेकिन निवेशकों के कमजोर पड़ते रुझान से संकेत मिलता है कि करीब 7.5 फीसद की यह वृद्धि दर वास्तविकता से अधिक बताई गई हो सकती है।
रिपोर्ट केमुताबिक, कई प्रस्तावित आर्थिक सुधारों को संसद में पारित कराने के लिए सरकार को कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। इस कारण राजग सरकार के समर्थन में आगे आए कई निवेशक पीछे हट रहे हैं। मोदी सरकार संसद में भूमि अधिग्रहण बिल पर पर्याप्त राजनीतिक समर्थन नहीं जुटा पाई है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के मामले में भी यही हाल है। जीएसटी संविधान संशोधन बिल संसद से पारित नहीं हो सका है। सरकार की ओर से इस को लेकर विपक्षी दलों के साथ अब भी विचार-विमर्श चल रहा है।
साढ़े सात फीसद रही थी रफ्तार
पिछले वित्त वर्ष 2015-16 की चौथी तिमाही में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट 7.9 फीसद रही। पूरे वित्त वर्ष 2015-16 में आर्थिक विकास दर 7.6 फीसद रही थी। आधिकारिक अनुमान के मुताबिक ही है। 2014-15 में देश की जीडीपी 7.2 फीसद रही थी। दो दिन पहले ही मॉर्गन स्टेनली के मुख्य ग्लोबल रणनीतिकार रुचिर शर्मा ने भी भारत की आर्थिक वृद्धि दर के दावों पर शक जाहिर किया था। शर्मा ने कहा था कि जीडीपी के इन आंकड़ों को "बढ़ा-चढ़ाकर" दिखाया गया है।