मध्य-हिमालय क्षेत्र में स्थित उत्तराखंड कम से कम 50 बड़े भूकंप और बाढ़ झेल चुका है, लेकिन 1803 में गढ़वाल में आए भूकंप के बाद दूसरी सबसे बड़ी अापदा (2013 में 19 जून को आई बाढ़) एक प्राकृतिक आपदा भर नहीं थी। इस आपदा को बनने में कई साल लगे थे।
2009 में बाढ़ और भू-स्खलन की एक श्रृंखला ने उत्तराखंड में 70 से ज्यादा की जान ली थी। वह एक चेतावनी थी जो 2013 में बाढ़ के रूप में वापस लौटी। इसी साल हमारे दो प्रतिष्ठित संस्थानों- वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (देहरादून) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (रुड़की) ने अलकनंदा-भागीरथी बेसिन में हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स के समग्र प्रभावों पर एक-दूसरे से बिलकुल अलग रिपोर्ट सौंपी।
आईआईटी ने जहां नदियों के तीव्र दोहन से पैदा होने वाले खतरे को कम करने के लिए कुछ सुझाव दिए थे। वहीं WII ने कहा कि प्रस्तावित 39 में से 24 बांध नदियों को बहुत नुकसान पहुंचाएंगे, इसलिए उन्हें बनाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। तब तक, अन्य 31 प्रोजेक्ट या तो शुरू हो चुके थे या अंडर कंस्ट्रक्शन थे।