खास बात यह है कि खुदरा महंगाई के बढ़ने की रफ्तार शहरों की अपेक्षा गांवों में अधिक है। रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति का रुख इसी खुदरा मुद्रास्फीति के आधार पर तय करता है, इसलिए महंगाई के सिर उठाने से निकट भविष्य में ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है। वहीं सरकार के लिए खाद्य प्रबंधन एक चुनौती साबित हो सकता है।
खुदरा महंगाई दर इस साल अप्रैल में 5.47 प्रतिशत और पिछले साल मई में 5.01 प्रतिशत थी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मई महीने में दालों की महंगाई दर 31.57 प्रतिशत रही। वहीं सब्जियों के दाम भी 10.77 प्रतिशत बढ़े जबकि अप्रैल में इसमें 4.82 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। विशेष बात यह है कि दालों की कीमत में वृद्धि शहरों की अपेक्षा गांवों में अधिक है। चीनी और कन्फेक्शनरी उत्पादों की महंगाई दर 13.96 प्रतिशत रही। इसी तरह अंडों की महंगाई 9.13 प्रतिशत बढ़ी। कुल मिलाकर खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर मई में 7.55 प्रतिशत बढ़ी जबकि अप्रैल में इसमें 6.32 प्रतिशत वृद्धि हुई थी। हालांकि अनाज, मीट और दुग्ध जैसे उत्पादों की महंगाई में वृद्धि का स्तर इतना अधिक नहीं रहा। ईंधन और बिजली के मामले में महंगाई दर मई के महीने में अपेक्षाकृत कम रही।
खुदरा महंगाई दर में वृद्धि के चलते जहां सरकार के लिए खाद्य प्रबंधन एक चुनौती होगी, वहीं इसके बढ़ने से ब्याज दरें नीचे आने की आशाएं धूमिल हो सकती हैं। रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति तय करने के लिए खुदरा महंगाई को ही संज्ञान में लेता है। हाल में मौद्रिक नीति की द्विमासिक समीक्षा करते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने आरबीआई की मुख्य उधारी दर रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया था। उन्होंने ऐसा करते वक्त महंगाई बढ़ने की संभावनाओं की ओर इशारा किया था। इस बीच मानसून बेहतर रहने की संभावनाओं से महंगाई दर नीचे आने की उम्मीद है।