उन्होंने कहा कि इन परिस्थितियों में विश्व बैंक को वित्तीय मदद बढ़ाने, आकलन एवं सलाह देने तथा मायनेपूर्ण आयोजक की भूमिका निभाने की जरुरत है। जेटली ने कहा कि कम एवं मध्यम आय वाले देशों को रियायती वित्तीय मदद मुहैया कराने के लिए क्राइसिस रिस्पांर्स विंडो के तहत मध्यस्थ वित्तीय फंड बनाना अधिक प्रभावी होगा। वित्त मंत्री ने डायनेमिक फॉर्मूला का उल्लेख करते हुए कहा कि हिस्सेदारी में सुधार के एजेंडे पर आगे बढ़ना उत्साहवर्धक है।
उन्होंने कहा कि अत्यंत गरीबी को समाप्त करने, सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करने तथा संघर्ष एवं अनिश्चितता के कारण उपस्थित पुनर्निमाण की चुनौतियों से निपटने का अपूर्ण लक्ष्य इस बात का द्योतक है कि बैंक को अपना वार्षिक ऋण बढ़ाकर एक हजार करोड़ डॉलर करना चाहिए।
जेटली ने कहा कि ऐसा करने के लिए इंटरनेशनल बैंक फार रीकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (आईबीआरडी) तथा इंटरनेशनल फाइनेंस को-ऑपरेशन (आईएफसी) दोनों को जेनरल कैपिटल इनक्रीज (जीसीआई) की जरूरत होगी। इन दोनों संस्थानों को बड़ी मात्रा में सेलेक्टिव कैपिटल इनक्रीज (एससीआई) की भी जरूरत होगी ताकि विकासशील देशों की बढ़ती भूमिका पारिलाक्षित हो सके।
विकास की पृष्ठभूमि में वर्ल्ड बैंक की अग्रणी भूमिका को बनाये रखने के लिए समय-समय पर ऐसे कदम उठाते रहने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि हमें इंस्तांबुल सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। हमें यह मानना पड़ेगा कि आईबीआरडी एवं आईएफसी में विकासशील देशों की हिस्सेदारी बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने का समय आ गया है।
जेटली ने पर्यावरणीय एवं सामाजिक मानकों पर बहस पर जोर देते हुए कहा कि यह ऋण लेने वाले देशों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि मैंने यह नोटिस किया है कि ऋण लेने वाले देशों के साथ सलाह की प्रक्रिया समाप्त हो गयी है। भारत समेत ऋण लेने वाले इन देशों ने विश्व बैंक के दल को प्रस्तावित ईएसएफ-2 ड्राफ्ट के मानकों के संभावित असर की जांच करने का सही अवसर दिया है। मुझे यकीन है कि बैंक इस मूल्यवान फीडबैक पर ध्यान देगा तथा सदस्य देशों के विचार के लिए सही प्रकार के मानकों का प्रस्ताव देगा।