‘डेमोक्रेटिक इकोनॉमिक्स’ से सुलझेंगी समाजिक समस्याएं– शिव विश्वनाथन

किसानों द्वारा आत्महत्या के मामलों को कोई संजीदगी से नहीं ले रहा है. मौजूदा सरकारें बायोटेक्नोलाॅजी से खेती का परिदृश्य बदलना चाहती हैं. इस दिशा में काफी चर्चा भी हो रही है, लेकिन इस पूरे सिस्टम को लोकतांत्रिक तरीके से लागू करना होगा, अन्यथा किसानों की दशा को नहीं सुधारा जा सकता.

फॉरमल इकोनॉमी का दायरा बढ़े

आज देशभर में जिस स्मार्ट सिटी की बात हो रही है, उसमें कहीं भी कोई स्मार्टनेस नहीं दिख रहा है. इसमें इनफाॅरमल इकोनॉमी पर ध्यान नहीं दिया जा रहा. देश में करीब 70 फीसदी आबादी इनफाॅरमल इकोनॉमी से जुड़ी है. इतनी बड़ी आबादी के फाॅरमल इकोनॉमी से वंचित रहने की दशा में अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव नहीं आ सकता. इसलिए सबसे पहले इन्हें फाॅरमल इकोनॉमी से जोड़ना होगा.

सभी के लिए हो समान अवसर

सरकार को सामाजिक क्षेत्र की नीतियों की समीक्षा करनी होगी. देशभर में अनेक प्रकार की हिंसा हो रही है, जिसे रोकना होगा. विस्थापन की बड़ी समस्या पैदा हो गयी है. सभी को समान अवसर मुहैया कराने पर जोर देना होगा. बेरोजगारी जैसी समस्या से सबसे पहले निबटना होगा.

डेमोक्रेटिक इकोनॉमिक्स की जरूरत

मौजूदा आर्थिक विशेषज्ञ इस दिशा में ज्यादा नहीं सोचते हैं. साहित्य, विचारधारा, विज्ञान आदि पर तो चर्चा हो रही है, लेकिन इकोनॉमिक्स पर इस तरह की कोई चर्चा नहीं होती है.

केवल ‘मेक इन इंडिया’ की बात करने से कुछ नहीं होगा. एग्रीकल्चर और इनफाॅरमल सेक्टर पर जब तक ध्यान नहीं दिया जायेगा, तब तक अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं होगा. इसके लिए विश्व बैंक से बात की जा सकती है. इसके लिए केवल मिडल क्लास को प्रोमोट करने से ज्यादा कुछ हासिल नहीं होगा. हाशिये पर मौजूद लोगों को बढ़ावा देने पर ही आर्थिक सुधार की राह पर आगे बढ़ा जा सकता है.

इकोलाॅजिकल डिजास्टर से बचाव

आपदाग्रस्त इलाकों में होने वाली रिकवरी बेहद धीमी गति से हो रही हैं. आपदाग्रस्त इलाकों पर सरकार का पूरा ध्यान नहीं होने की दशा में अर्थव्यवस्था पर उसका बुरा असर पडता है. उदाहरण बहुत से हैं, जिसमें चेन्नई हमारे सामने है. इकोलाॅजी का अर्थशास्त्र अलग होता है, जिसे हमें समझना होगा.

समाज के वंचित तबकों को मुख्यधारा में लाने की हो कोशिश

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