विश्र्व बैंक ने बृहस्पतिवार को यहां ‘इंडिया डवलपमेंट अपडेट’ रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि वित्त वर्ष 2015-16 में भारत की विकास दर 7.5 प्रतिशत, 2016-17 में 7.8 प्रतिशत और 2017-18 में 7.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
उल्लेखनीय है कि चीन की विकास दर सुस्त पड़ गयी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष सहित कई वैश्रि्वक संस्थाओं का कहना है कि चालू वित्त वर्ष में चीन की वृद्धि दर सात प्रतिशत से नीचे रहेगी। हाल के वर्षो में चीन की यह न्यूनतम वृद्धि दर होगी।
विश्र्व बैंक ने कहा कि अल्पावधि में वैश्विक परिस्थिति के मद्देनजर भारत की स्थिति बेहतर है। चीन के साथ भारत का व्यापार कम होने तथा विदेशी मुद्रा भंडार भी पर्याप्त होने से भारत की स्थिति बेहतर है। 2012-13 में भारत के पास छह महीने के आयात के लिए विदेशी मुद्रा भंडार था वहीं अब यह 9 महीने के आयात के बराबर है। साथ ही रुपया भी अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। इसके अलावा चालू खाते का घाटा भी कम हो रहा है।
हालांकि विश्र्व बैंक ने कहा कि विकास दर को तेज करने के लिए निवेश की दर 8.8 प्रतिशत बनाए रखनी होगी। साथ ही उच्च विकास दर को बनाए रखने के लिए निर्यात वृद्धि दर को भी उठाना भी होगा।
भारत में विश्र्व बैंक के निदेशक ओनो रुहल ने कहा कि भारत की मध्यवधि स्थिति अच्छी है। सतत विकास दर तथा रोजगार सृजन तेज करने के लिए लंबित सुधारों को लागू करने की जरूरत है। कई क्षेत्रों में प्रगति देखी जा सकती है लेकिन अब भी जीएसटी जैसे लंबित सुधारों को लागू करने की जरूरत है।
विश्र्व बैंक ने कहा कि उच्च विकास दर को बनाए रखने का काफी कुछ दारोमदार राज्यों पर होगा। बैंक ने कहा कि 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद देश में होने वाले कुल व्यय में से 57 प्रतिशत राज्यों के हाथ चला गया है जो कि जीडीपी का करीब 16 प्रतिशत है। इसमें से 74 प्रतिशत धनराशि को राज्य अपनी सुविधानुसार खर्च करने को स्वतंत्र हैं। ऐसे में राज्यों के पास अपनी योजनाओं में फेरबदल कर अपनी क्षमता के अनुरूप इस धनराशि के इस्तेमाल करने का मौका है। विश्र्व बैंक ने स्थानीय निकायों की क्षमता भी बढ़ाने की सिफारिश की है।
विश्र्व बैंक ने परोक्ष करों की बजाय प्रत्यक्ष करों से राजस्व संग्रह बढ़ाने की सिफारिश भी की है। बैंक का कहना है कि भारत अपने जीडीपी का 11.39 प्रतिशत परोक्ष करों से वसूल करता है जो कि काफी अधिक है।वहीं प्रत्यक्ष करों से भारत का राजस्व जीडीपी का 5.7 प्रतिशत है जो अन्य देशों की अपेक्षा काफी कम है। इसलिए देश को आय और लाभ से अधिक कर वसूलना चाहिए।