अल नीनो भूलिए… आ रही ला नीना

रिकॉर्ड के हिसाब से इस साल सबसे असरदार अल नीनो रहा, बावजूद इसके अगले 1-2 साल तक कृषि जिंसों की कीमतों में ज्यादा तेजी नहीं आएगी। अगले साल का मौसम भारत के अनुकूल रहने के आसार हैं।

अल नीनो ने इस साल खासा कहर ढाया। इस वजह से भारत में मानसून कमजोर हुआ और बारिश कम हुई, जबकि मुकम्मल दक्षिण-पूर्व एशिया में खतरनाक सूखे की स्थिति बनी। दुनिया के कई दूसरे इलाकों में साल 1997 के बाद अल नीनो का असर सबसे ज्यादा हुआ। लेकिन, मौसम विज्ञानियों की नजर अब 2016 पर है। इस बात की तगड़ी संभावना जताई जा रही है कि मौसम का मजूदा मिजाज बदलेगा और यह ‘ला नीना’ का रुख करेगा। ला नीना के असर से दक्षिण-पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया में अच्छी बारिश हो सकती है, जबकि मिडवेस्ट अमेरिका (शिकागो, इंडियानापोलिस, कोलंबस, डेट्रॉयट और ओमाहा जैसे शहर) में सूखा पड़ सकता है।

ज्यादा असरदार होगी ला नीना

कमोडिटी की कीमतों में तेजी का इंतजार करने वालों के लिए यह अच्छी खबर हो सकती है क्योंकि कई कृषि जिंसों पर अल नीनो प्रभाव का ज्यादा असर नहीं हुआ, खास तौर पर उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर का पानी गर्म होने की वजह से। इसके उलट ला नीनो ज्यादा असरदार साबित हो सकती है। कंसल्टेंसी फर्म कमोडिटी वेदर ग्रुप के डेविड स्ट्रीट का कहना है, ‘असरदार अल नीनो के बाद ला नीनों की बहुत संभावना रहती है।’ स्ट्रीट के मुताबिक 1972, 1982 और 1997 की अल नीनो के बाद ला नीना प्रभाव देखा गया था। तीन साल पहले अमेरिका में आया सूखा ला नीनो प्रभाव का ही नतीजा था, जब वहां अनाज और तिलहन की फसल बर्बाद हो गई थी।

घबराने की जरूरत नहीं

फिलहाल ज्यादा चिंता वाली बात नहीं है। कमोडिटी ब्रोकर्स ईडी एंड एफ मैन की रिसर्च हेड कोना हैक कहती हैं, ‘बाजार में अभी आपूर्ति की स्थिति बहुत अच्छी है।’ कोना का कहना है कि थाईलैंड, भारत और इंडोनेशिया में सामान्य से कम बारिश हुई है, लेकिन यह कमोडिटी में तेजी का दौर नहीं है और घबराने वाली कोई बात नहीं है।

चावल की नहीं होगी कमी

इंटरनेशनल ग्रेन्स काउंसिल (आईजीसी) के अर्थशास्त्री जेम्स फेल के मुताबिक अल नीनो की वजह से कीमतों में एक सीमा से ज्यादा गिरावट नहीं आई। लेकिन, ग्लोबल मार्केट में चावल जैसी कमोडिटी की कोई कमी नहीं है। आईजीसी के मुताबिक प्रमुख चावल निर्यातक थाइलैंड में 2015 के अंत तक 94 लाख टन चावल के भंडार का अनुमान है। अगले साल तक यह घटकर 58 लाख टन के स्तर पर आ सकता है, फिर भी यह पांच साल के औसत 40 लाख टन से काफी अधिक रहेगा। फेल के मुताबिक 2015-16 के दौरान भारत में चावल का 1.13 करोड़ टन बफर स्टॉक का अनुमान है, जो औसत से ज्यादा है।

स्थिर रहेंगी कीमतें

सीएमई ग्रुप के अर्थशास्त्रियों के मुताबिक मौजूदा हालात और साल 1997 की स्थिति में कई समानताएं हैं। हालांकि यह ऑन रिकॉर्ड सबसे गंभीर अल नीनो प्रभाव है, फिर भी इसकी वजह से अगले 12 से 24 महीनों तककीमतें नहीं बढ़ेंगी।

 

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