राकेश कुमार सिंह ने कहा कि प्रांत, बोली, लिबास, धर्म, जाति या आर्थिक-सामाजिक हैसियत सभी जगहों पर जेंडर (लिंग) हिंसा जारी है. लिंग निरपेक्षता को लेकर अनपढ़ व पढ़े-लिखे लोग, दोनों ही समान रूप से नकारात्मक हैं. घरों से लेकर सड़कों तक विभिन्न रूपों में लिंग हिंसा की शिकार औरतें हो रही हैं.
2017 तक चलायेंगे साइकिल
राकेश कुमार सिंह ने बताया कि वह मूलत: बिहार के शिवहर जिले के तरियानी गांव के रहनेवाले हैं. उन्होंने 2012 में नौकरी छोड़ दी. इसके बाद किताबें लिखने लगे. 2013 में हिंदी युग्म प्रकाशन के तहत उनकी पहली किताब ‘बस संकर टन गनेस’ नाम से पुस्तक प्रकाशित हुई.
अपनी दूसरी किताब ‘कुंभ’ लिखने की तैयारी करने के दौरान राकेश दिल्ली में एसिड अटैक की शिकार कुछ लड़कियों से मिले. पीड़ित लड़कियों की बातों को सुनने के बाद उन्होंने निर्णय लिया कि वह इसके खिलाफ साइकिल यात्रा करेंगे. 15 मार्च, 2014 को उन्होंने चेन्नई से अपने सफर की शुरुआत की. तमिलनाडु, पॉडिचेरी, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश व ओडिशा होते हुए वह इस साल अगस्त में बिहार पहुंचे हैं.