नई दिल्ली। वर्तमान फाइनेंशियल ईयर के दौरान मानसून की बेरुखी के कारण खाद्य तेल का इम्पोर्ट 14 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। ऐसा ऑयलसीड्स का प्रोडक्शन कम होने की वजह से होगा। यह जानकारी एसोचैम की लेटेस्ट स्टडी से सामने आई है।
जरूरत के 60 फीसदी एडिबल ऑयल का होता है आयात
भारत अपनी जरूरत का 60 फीसदी से अधिक एडिबल ऑयल विदेशों से इंपोर्ट करता है। देश की कुल वार्षिक वेजिटेबल ऑयल मांग 17-18 मिलियन टन है। पाम ऑयल का हिस्सा देश के कुल वेजिटेबल ऑयल इम्पोर्ट में 70 फीसदी है। खाद्य तेल की मांग पूरा करने के लिए प्रमुख रूप से मलेशिया और इंडोनेशिया से पाम ऑयल-पामोलिन तथा अमेरिका , अर्जेन्टीना आदि देशों से सोयाबीन तेल का आयात किया जाता है।
2014-15 में 10 अरब डॉलर का रहा था खाद्य तेल आयात
2014-15 में खाद्य तेल आयात 10 अरब डॉलर का रहा था। घरेलू स्तर पर तिलहन उत्पादक प्रमुख राज्यों में गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में मानसून के कमजोर रहने से उत्पादन प्रभावित होगा और आयात पर निर्भरता बढ़ जाएगी।
मानसून का पड़ सकता है तिलहन के उत्पादन पर असर
पिछले वित्त वर्ष में 12 फीसदी वर्षा कम हुई थी और इसकी वजह से घरेलू तिलहन उत्पादन पर काफी असर पड़ा था। इस वर्ष भी मानसून के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार बारिश 12 फीसदी कम रही है। इसकी वजह से तिलहन उत्पादन पर असर पड़ेगा और मांग को देखते हुए आयात बढ़ेगा। 2013-14 में तेल आयात 7. 2 अरब डॉलर का रहा था, जो पिछले वित्त वर्ष में 46 फीसदी बढ़कर 10 अरब डॉलर पर पहुंच गया था।
मांग और आपूर्ति में बढ़ रहा है अंतर
देश में खाद्य तेल की बढ़ती मांग के अनुरूप तिलहन का उत्पादन नहीं बढ़ा है। कम और अस्थिर उत्पादकता की वजह से किसान तिलहन की तरफ कम ध्यान दे रहे हैं और इसकी वजह से मांग तथा आपूर्ति का अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत में ऑयल प्रोसेसिंग के क्षेत्र में टेक्नोलॉजी की कमी भी बाधा बन रही है।