यात्री प्यास बुझा सके, इसके लिए अहिल्याबाई ने यहां सीढ़ी वाली बावड़ियां बनवाई थीं। वर्षों तक सरकार ने इन बावड़ियों की अनदेखी की, लेकिन अब जाकर इसका पुरातात्विक महत्व समझा। मध्यप्रदेश प्राचीन स्मारक, पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1964 की उपधारा (3) के तहत प्रदेश के 26 स्थानों को राज्य सरंक्षित स्मारक का दर्जा दिया गया है, जिसमें इंदौर संभाग से सिर्फ जाम की बावड़ी शामिल है। छोटी जाम रहवासी दीपक शर्मा बताते हैं कि देवी अहिल्या ने राहगीरों के लिए तीन बावड़ियां बनवाई थीं। उनमें गर्मी के दिनों में भी पानी खत्म नहीं होता है। ग्रामीण इसके पानी को रोज के कामों के उपयोग में लेते हैं और खेतों में सिंचाई भी की जाती है।
वसूला जाता था सुरक्षा कर
जाम घाट दर्रे से यह सड़क महेश्वर की तरफ जाती है और इस गांव के बाद विंध्याचल पर्वत श्रृंखला है। इतिहासकार शिवरानायण यादव बताते हैं कि कम्पेल से महेश्वर जाने के लिए देवी अहिल्या छोटी जाम रूट का उपयोग करती थी। इस रास्ते पर लूटपाट भी होती थी। यहां आलीशान द्वार का निर्माण देवी अहिल्या ने कराया था। गांव में बनाए गए किले में सेना की टुकड़ी रहती थी। इस रास्ते से आने वालों से सुरक्षा कर वसूला जाता था। उस राशि को विकास कार्यों में खर्च किया जाता था। राहगीरों को सुविधा देने के लिए देवी अहिल्या ने यहां सीढ़ीनुमा बावड़ियां बनाई थीं। जिन यात्रियों के पास रस्सी नहीं होती थी, वे भी सीढ़ियों से नीचे उतरकर पानी ले सकते थे।
देवी अहिल्या की बावड़ी को संरक्षित स्माकर का दर्जा देने के बाद उसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। पुरातत्व विभाग बावड़ी की पालों की मरम्मत कर पुराने स्वरूप में लौटा चुका है। बावड़ी के पास बने तालाब पर पर्यटन विभाग ने व्यू पॉइंट बनाया है।
– एसएन राज, संचालक, पुरातत्व विभाग