बिजली बेशुमार, नहीं हैं खरीदार

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। राज्यों में बिजली कटौती की समस्या के लिए जो दवा सरकार अभी तक बताती रही है अब वही दर्द का कारण बन गई है। हाल फिलहाल तक केंद्र सरकार राज्यों पर बिजली कंपनियों के साथ लंबी अवधि का खरीद समझौता करने का दबाव बनाती रही है।

देश के अधिकांश राज्यों ने दर्जनों बिजली कंपनियों के साथ इस बारे में समझौता भी किया। मोटे तौर पर राज्यों को ये बिजली कंपनियां औसतन 3.50 रुपये से लेकर 5.50 रुपये प्रति यूनिट पर बिजली दे रही हैं। दूसरी तरफ आज पावर एक्सचेंज में बिजली 2.50 रुपये प्रति यूनिट पर उपलब्ध है। लेकिन राज्य लंबी अवधि के समझौतों की वजह से इसे नहीं खरीद रहे। अंततः इसका खामियाजा आम जनता को बिजली कटौती और बिजली की बढ़ी हुई दरों के तौर पर चुकाना पड़ रहा है।

देश का बिजली क्षेत्र अभी जिस हालात से गुजर रहा है, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया। बिजली प्लांट मांग कम होने की वजह से अपनी क्षमता का महज 60 फीसद बिजली पैदा कर रहे हैं। देश में 57 ताप बिजली घरों में मांग की कमी की वजह से क्षमता से कम बिजली पैदा की जा रही है। वहीं, उत्तर प्रदेश से लेकर तमिलनाडु तक में दो घंटे से लेकर 7-8 घंटे की रोजाना बिजली कटौती की जा रही है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में पिछले एक पखवाड़े से तीन घंटे की बिजली कटौती आम है।

बढ़ रहा है कोयला स्टॉक

उत्पादन नहीं होने की वजह से कोयला आधारित ताप बिजली घरों में कोयले का स्टॉक बढ़ता जा रहा है। उत्तर प्रदेश के 13 थर्मल बिजली घरों में 6 दिनों से लेकर 47 दिनों तक के उपयोग के लिए कोयला पड़ा हुआ है। एक वर्ष पहले तक इन बिजली घरों में 3 दिनों से 7-8 दिनों तक ही कोयला होता था। पंजाब और हरियाणा के ज्यादातर बिजली घरों में 20 दिनों से लेकर 60 दिनों तक के बीच का कोयला रखा हुआ है। केंद्रीय बिजली प्राधिकरण की रिपोर्ट के मुताबिक देश के बिजली घर क्षमता का महज 62 फीसद उत्पादन कर रहे हैं।

राज्य साबित हुए फिसड्डी

बिजली मंत्रालय के अधिकारी इस पूरे हालात के लिए राज्यों के स्तर पर बिजली वितरण की स्थिति में सुधार के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इनका कहना है कि केंद्र निजी क्षेत्र के साथ मिलकर पर्याप्त बिजली बनाने लगी है। लेकिन राज्य अपना नेटवर्क सुधारने में असफल रहे हैं। बिजली की चोरी रोकने में भी अधिकांश राज्य विफल साबित हुए हैं। उत्तर प्रदेश में अभी भी 40 फीसद घरों को बगैर मीटर लगाए बिजली की आपूर्ति की जा रही है।

ट्रांसमिशन व वितरण से होने वाली आपूर्ति का स्तर अभी भी तमाम राज्यों में 30 फीसद के ऊपर बना हुआ है। यह राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों पर बड़ा बोझ डाल रहा है। इस वजह से राज्य सस्ती दरों पर पावर एक्सचेंज पर उपलब्ध बिजली का कोई फायदा नहीं उठा पा रहे हैं। दो वर्ष पहले तक देश के पावर एक्सचेंज में बिजली8 से 10 रुपये प्रति यूनिट पर उपलब्ध थी।

जनता पर बोझ

आम जनता को कटौती के साथ बढ़ी हुई बिजली की मार भी झेलनी पड़ रही है। हाल ही में दिल्ली में बिजली की दर में छह फीसद का इजाफा किया गया। बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, पंजाब के बिजली नियामक प्राधिकरणों को बिजली दर बढ़ाने का प्रस्ताव मिल चुका है। माना जा रहा है कि जिस तरह से पिछले वित्त वर्ष के दौरान तमाम राज्यों ने 10 से 22 फीसद की वृद्धि बिजली शुल्कों में की थी उसी तर्ज पर इस वर्ष भी बढ़ोतरी की तैयारी है।

बिजली की उपलब्धता व मांग (अप्रैल, 2015)

राज्य—-मांग—उपलब्धता

 

बिहार—1650–1006
उप्र—-7815–6917
पंजाब–2916—2915
उत्तराखंड-1006–979
हरियाणा–3003–3001
दिल्ली—2262–2260
हिमाचल प्रदेश-718-716
झारखंड–601–598
(केंद्रीय बिजली प्राधिकरण की रिपोर्ट)

 

 

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