इसका मकसद उन वेबसाइट को प्राथमिकता देने का है, जो मोबाइल उपकरणों के लिहाज से उपयुक्त हैं। यानी ऐसी वेबसाइट, जो भारी-भरकम शब्दों, भारी सॉफ्टवेयर जैसे फ्लैश आदि का इस्तेमाल नहीं करती, वे खोज परिणामों में पहले दिखेंगी और वे वेबसाइट, जिनका आकार मोबाइल के स्क्रीन के आकार के लिहाज से अनुपयुक्त हैं, वे सर्च परिणामों में काफी बाद में आएंगी। इस बदलाव से कई वेबसाइट का वरीयता क्रम बदल जाएगा। फॉरेस्टर रिसर्च संस्था की एक रिपोर्ट के अनुसार, 38 प्रतिशत से भी अधिक संगठनों की वेबसाइट गूगल के नए मानकों पर खरी नहीं उतरतीं। अब या तो लोग अपनी वेबसाइट को मोबाइल उपकरणों के अनुसार बनाएंगे, नहीं तो उन्हें खोज परिणामों में पीछे छूट जाने के लिए तैयार रहना होगा। जाहिर है, इससे मोबाइल द्वारा इंटरनेट इस्तेमाल करने में काफी सुविधा हो जाएगी।
माना यह जा रहा है कि इस रणनीति से गूगल की आमदनी में बढ़ोतरी होने की संभावना है, क्योंकि यदि उपभोक्ताओं को मोबाइल पर वेबसाइटों को देखने में आसानी होगी, तो उनकी विज्ञापन देखने की भी संभावना अधिक हो जाएगी। इस नए बदलाव के साथ गूगल मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से होने वाली उसकी आय में पिछले कुछ समय में जो गिरावट आई है, उसे थामना चाहता है और ज्यादा से ज्यादा लोगों को मोबाइल इंटरनेट से जोड़ना चाहता है। गूगल चाहता है कि अपनी दिनचर्या में व्यस्त लोग रोजमर्रा की छोटी से छोटी खोज भी गूगल के जरिये करें। भारत जैसे देश में, जहां मोबाइल इंटरनेट का बेतहाशा इस्तेमाल बढ़ा है, वहां ऐसी सुविधा लोगों को और ज्यादा मोबाइल इंटरनेट से जोड़ने के लिए प्रेरित करेगी, लेकिन हमें इस तथ्य को भी नहीं भूलना चाहिए कि यहां इंटरनेट की आधारभूत संरचना विकसित देशों के मुकाबले काफी पिछड़ी हुई है। ऐसे में, यहां गूगल का यह प्रयास आम उपभोक्ताओं के इंटरनेट सर्फिंग समय को कितना सुहाना बनाएगा, इसका फैसला अभी होना है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)