सीकर। बूंद-बूंद सिंचाई के बाद अब सब्जियों की खेती में पानी की हर बूंद को सहेजने में मल्च तकनीक अच्छी कारगर हुई है। इस विधि से फसल में किसान 75 फीसदी पानी की बचत कर सकते हैं। वहीं खरपतवार की समस्या भी नहीं रहती। उपयोगिता को देखते हुए इस साल जिले में करीब एक हजार किसानों ने इजरायल व महाराष्ट्र की तर्ज पर प्रायोगिक तौर पर 2000 हैक्टेयर सब्जियों की खेती में पहली बार मल्च तकनीक का उपयोग किया है। किसानों का कहना है कि यह तकनीक अपनाकर खेती करने से फसलों की पैदावार दोगुना हो गई है। उद्यान विभाग ने भी इस विधि को शेखावाटी की बलुई मिट्टी के लिए बेहद उपयोगी माना है।
क्या है यह तकनीक और इसके फायदे
मल्च प्लास्टिक की शीट है। इसे फसल बुआई से पहले खेत में ड्रिप सिंचाई के लिए बनाए मिट्टी के बैड या क्यारियों में बिछाया जाता है, ताकि भूमि की नमी धूप से सूखे नहीं। वहीं खेत में खरपतवार नहीं हो। इससे भूमि में उर्वरक लंबे समय तक सुरक्षित रहेंगे। सहायक निदेशक उद्यान बीएस यादव का कहना है कि सब्जियों की खेती में शेखावाटी की बलुई मिट्टी में मल्च तकनीक अच्छी कारगर हुई है। इसे अपनाकर किसान तरबूज, खरबूज, टमाटर, मिर्च सहित अनेक फसलों की अच्छी पैदावार ले रहे हैं।
मल्च खरीदने के लिए भी अनुदानित योजना शुरू
मल्च की खरीद के लिए उद्यान विभाग ने जिले में एक साल पहले अनुदान योजना शुरू की थी। विभाग के द्वारा किसानों को अधिकतम दो हैक्टेयर तक मल्च लगाने के लिए अनुदान दिया जाता है। इसके लिए मुख्यालय से विभाग को जून-जुलाई तक टारगेट दिए जाएंगे।