यह दर्द भरी बात घोघलगांव जल सत्याग्रह के 16वें दिन आंदोलनकारी रमेश कड़वाजी ने कही। उन्होंने कहा कि मैं बाकी किसी की बात नहीं करता। मेरे खेत का मुझे मुआवजा नहीं मिला है। फिर इसमें पानी क्यों भर दिया गया है। इसका जवाब मुख्यमंत्री शिवराजसिंह को देना चाहिए।
जल सत्याग्रह कर रहे 68 में से कई लोगों के पैर गलने लगे हैं। लगातार पानी में रहने की वजह से कुछ सत्याग्रही बुखार, सर्दी से भी पीड़ित है। एखंड की बुजुर्ग सकुबाई ने कहा प्रभावितों के अधिकार मिलने तक हम सत्याग्रह जारी रखेंगे। आंदोलनकारियों ने कहा सरकार हमारे मरने का रास्ता देख रही है।
बिना किसी विरोध के बन गया था बांध
– 2003 में ओंकारेश्वर बांध का भूमिपूजन अटलबिहारी वाजपेयी ने किया था। महज चार साल की रिकॉर्ड समय अवधि में बांध बनकर तैयार हो गया था। बांध निर्माण के दौरान किसी भी प्रभावित ने कोई विरोध नहीं किया।
– 18 अगस्त 2007 को ओंकारेश्वर बांध में पहली बार 189 मीटर तक पानी भरना शुरू किया गया। सरकार की उम्मीद से विपरीत गुंजारी गांव में पानी भर गया था। तब भी नर्मदा बचाओ आंदोलन ने जल सत्याग्रह किया था। लगभग 17 दिन के जल सत्याग्रह के बाद सरकार ने 225 करोड़ रुपए का पैकेज दिया था।
– इसके बाद 11 अगस्त 2012 को बांध का जलस्तर 189 से बढ़ाकर 191 मीटर कर दिया गया। 51 से अधिक महिला-पुरुषों ने फिर से घोघलगांव में जल सत्याग्रह शुरू कर दिया। तब मुख्यमंत्री की इस घोषणा पर कि प्रभावित किसानों को जमीन के बदले जमीन और ढाई-ढाई लाख रुपए का विशेष पैकेज दिया जाएगा, जल सत्याग्रह समाप्त हो गया। बांध का जलस्तर भी 189 मीटर कर दिया गया था। विधानसभा-लोकसभा चुनाव निपटते ही सरकार जमीन के बदले जमीन देने के वादे से मुकर गई।
– तीसरी मर्तबा 11 अप्रैल 2015 से बांध का जलस्तर बढ़ाकर 191 मीटर कर दिया गया है। इसी के विरोध में जल सत्याग्रह किया जा रहा है।
राहत देने में राजनीतिक पेंच
ओंकारेश्वर बांध के प्रभावितों को राहत देने में सरकार के सामने व्यवहारिक के साथ ही राजनीतिक पेंच भी है। ओंकारेश्वर बांध प्रभावितों को जमीन के बदले जमीन दी जाना संभव प्रतीत नहीं होता क्योंकि निमाड़ अंचल में तो सरकार के पास इतनी भूमि उपलब्ध ही नहीं है। कागजों पर सरकार की जमीन धरातल पर अतिक्रमित है या फिर अनउपजाऊ। ऐसे में पांच एकड़ जमीन के लिए नकद राशि का पैकेज दिया जा सकता है।
सरकार यह फैसला करती है तो इंदिरा सागर बांध के हजारों प्रभावित भी यह मांग दोहरा सकते हैं। इसके बाद महेश्वर बांध परियोजना का पूरा पुनर्वास और विस्थापन भी सरकार को करना है। यदि ऐसा होता है तो इसका पूरा श्रेय नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथ ही आम आदमी पार्टी को मिल जाएगा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी जल सत्याग्रह कासमर्थन कर चुके हैं। ऐसे में आंदोलनकारियों को राहत देना भाजपा के लिए राजनीतिक दबाव के आगे झुकने जैसा फैसला ही होगा।
मिलने के लिए कई बार लिखी चिट्ठी
– नबआं प्रमुख ने मुख्यमंत्री के बयान पर उठाए सवाल
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के जल सत्याग्रहियों द्वारा आंदोलन समाप्त करने के लिएबातचीत के रास्ते को नर्मदा बचाओ आंदोलन ने गलत ठहराया है। नबआं ने साफ किया है कि मुख्यमंत्री से लगातार संपर्क कर समस्या का समाधान निकालने की गुहार लगाई जा रही है लेकिन उनकी तरफ से कोई उचित जवाब नहीं दिया जा रहा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन को विकास विरोधी ठहराए जाने के बयान पर भी कई सवाल उठाए गए हैं। रविवार को जल सत्याग्रह का 16वां दिन रहा।
नबआं के वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री चौहान से मिलने के लिए 12 अप्रैल को प्रयास किया गया लेकिन उन्होंने समय नहीं दिया। इसके बाद 22 अप्रैल को पत्र लिखा गया, जिसके आधार पर 23 अप्रैल को नर्मदा घाटी विकास विभाग मंत्री लालसिंह आर्य चित्तरूपा पालित ने मुलाकात की। श्री आर्य ने मुख्यमंत्री से बात कर निर्णय लेने का आश्वासन दिया था।
श्री अग्रवाल ने बताया कि इस दौरान आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर समाधान निकालने का सुझाव दिया। साथ ही श्री केजरीवाल द्वारा फोन पर बात करने का प्रयास भी किया गया लेकिन श्री चौहान की तरफ से समय नहीं दिया गया।
आलोक अग्रवाल ने बताया कि 21 अप्रैल को पुनः आम आदमी पार्टी द्वारा फैक्स कर 25 अप्रैल को मिलने का समय मांगा गया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। श्री अग्रवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री चौहान की तरफ से यह कहा जाना कि हमें न चिट्ठी मिली है और न ही मिलने का प्रयास किया गया, पूरी तरह गलत है।
2005 में हो जाना था पुनर्वास
श्री अग्रवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री का यह बयान बेहद गलत है कि कुछ विकास विरोधी तत्व सत्याग्रह कर रहे हैं। ओंकारेश्वर बांध 2006 में बन गया था और कानून के अनुसार एक साल पूर्व 2005 में ही पुनर्वास हो जाना चाहिए था, जो आज तक नहीं हुआ है। श्री अग्रवाल ने कहा कि 10 साल में पुनर्वास नहीं होने के कारण किसानों को सिंचाई का लाभ नहीं मिल पाया है। इसके कारण विस्थापितों को अपने हक की लड़ाई लड़ना पड़ रहा है।