हालांकि वर्ष 2030 तक ही ईंधन आयात पर भारत की निर्भरता में 50 फीसदी से ज्यादा के इजाफे की संभावना है। ऐसे में ऊर्जा की लगातार बढ़ती मांग के चलते आयात में कटौती का यह लक्ष्य काफी चुनौती भरा नजर आता है। लेकिन समझने की बात है कि अधिक ईंधन आयात न सिर्फ आर्थिक बोझ बढ़ता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी खतरनाक है।
ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिहाज से कई मोर्चों पर एक साथ काम करने की जरूरत है। देश में खनन को लेकर स्पष्ट नीति की जरूरत है, ताकि निवेशक को बेवजह की परेशानी न हो। इसके साथ ही हमें गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों की ओर भी तेजी से बढ़ना होगा। अक्षय ऊर्जा एक ऐसा क्षेत्र है, जहां सौर, जल, पवन, बायोमास आदि से ऊर्जा का उत्पादन होता है। अपार प्राकृतिक संसाधनों वाले इस देश में गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों को विकसित करने पर अपेक्षाकृत कम काम हुआ है। हमारे यहां उपलब्ध कुल ऊर्जा में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी अभी करीब 13 फीसदी ही है! लेकिन अब सरकार इसके विकास के लिए हरित ऊर्जा गलियारे की बात कर रही है। गैर पारंपरिक ऊर्जा ‘मेक इन इंडिया’ का महत्वपूर्ण हिस्सा है। सरकार ने वर्ष 2022 तक 1,75,000 मेगावाट हरित ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है। एक लाख मेगावाट तो अकेले सौर ऊर्जा से ही बनाने का लक्ष्य है। पवन ऊर्जा के मामले में भी भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा बाजार है।
अनुमान है कि वर्ष 2050 में गैर परंपरागत स्रोत ही ऊर्जा उत्पादन का सबसे बड़ा और अहम जरिया होगा। आज भी करीब 70 करोड़ भारतीयों के पास एलपीजी की उपलब्धता नहीं है! पीएनजी का दायरा भी सीमित है! करीब 40 करोड़ लोगों को बिजली उपलब्ध नहीं है। जहां बिजली है भी, वहां कितने घंटे उपलब्ध रहती है, इसे हर कोई जानता है। सरकार ने वर्ष 2019 तक सबको 24 घंटे बिजली उपलब्ध करवाने का वायदा किया है, लेकिन इसके लिए गैर परंपरागत ऊर्जा के प्रति जागरूकता बढ़ाते हुए कम कीमत पर लोगों को इसके उपकरण उपलब्ध कराने होंगे। न सिर्फ विद्युत वितरण प्रणाली में सुधार लाना होगा, बल्कि लोकलुभावन राजनीति से बचते हुए मुफ्त बिजली देने से� भी बचना होगा। सिर्फ ‘अर्थ आवर’ जैसी रस्मअदायगी से ही काम नहीं चलेगा, बल्कि आम नागरिकों को भी ऊर्जा संरक्षण के प्रति गंभीर होना पड़ेगा। हमें समझनाहोगा कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा अब भी उजाले के अपने हक से वंचित है।