दीर्घकालिक याददाश्त व्यापक होती है, जबकि कामचलाऊ स्मृति चार से सात चीजों तक सीमित होती है व तुरंत बोझिल हो जाती है। दीर्घकालिक स्मृति में तथ्यों को सहेजते हुए हम उनका कुशलता के साथ इस्तेमाल करते हैं और उनको नए तथ्यों के साथ जोड़ते हैं। यानी दीर्घकालिक स्मृति मस्तिष्क का ऐसा हिस्सा नहीं, जिसे हम आउटसोर्स कर लें, बल्कि यह हमारी विचार प्रक्रिया का एक अनिवार्य व आधारभूत अंश है। प्रौद्योगिकी हमारे लिए तथ्यों को याद रखने की जरूरत को भले खत्म न कर सके, पर इससे उन्हें याद करना आसान हो सकता है। संज्ञानात्मक मनोविज्ञान का एक और बड़ा अध्ययन कहता है कि हम याद उसे ही रखते हैं, जिसके बारे में चिंतन करते हैं।
वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डैन विलिंघम के शब्दों में, याददाश्त विचार का अवशेष है। इस लिहाज से टेक्नोलॉजी बहुत मददगार साबित नहीं होती। संदेशों का अचानक नजर आना, वेबसाइटों में लगातार बदलाव हमें विषय-वस्तु के बारे में सोचने-विचारने का अवकाश ही नहीं देते। यदि हम ज्ञान अजिर्त करना चाहते हैं, तो सीखने-सिखाने के उपयोगी एप्स के मामलों में भी हमें वक्त देना होगा व उनके विषयों पर चिंतन करना होगा। हमारे सामने जो कंप्यूटिंग पावर है, उसके पास सीखने की प्रक्रिया को आसान बनाने की अपूर्व क्षमता है, पर ये गैजेट्स तभी हमें शिक्षित कर सकते हैं, जब पहले हम यह स्वीकार कर लें कि यह काम आसानी से नहीं होगा।
साभार- द गाजिर्यन
(ये लेखिका के अपने विचार हैं) – See more at: