अमेरिका में फेडरल रिजर्व की अध्यक्ष जेनट येलने का कहना है कि रूस में जारी संकट का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ेगा। उनके मुताबिक, अमेरिका के रूस के साथ विशेष आर्थिक संबंध नहीं हैं। बहरहाल, उन देशों की धड़कने बढ़ी हुआ हैं, जिनके रूस के साथ व्यापारिक संबंध हैं।
इस बीच रूस में आम जनता में आपाधापी मची है। जैसे-जैसे रूबल में गिरावट हो रही है, तमाम चीजें महंगी होती जा रही हैं। इस हफ्ते की शुरुआत से अबतक रूबल में 20 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है। अकेले बीते मंगलवार के कारोबार में डॉलर के मुकाबले रूबल में 11फीसदी की गिरावट दर्ज हुई। कुल मिलाकर 2014 में अबतक रूसी मुद्रा 50 फीसदी से ज्यादा टूट चुकी है।
रूस का यह आर्थिक संकट इस साल के शुरू में यूक्रेन संकट से साथ शुरू हुआ। यहां के क्रीमिया में विद्रोही पनप रहे हैं और अमेरिका आरोप है कि रूस उनका साथ दे रहा है। क्रीमिया में रूस का सैनिक अड्डा है। यूक्रेन के कुछ परमाणु घरों पर रूस का नियंत्रण है। रूस को डर था कि अगर कहीं राजनीतिक अराजकता फैलती है तो फिर उसके सैनिक अड्डे और परमाणु घरों की सुरक्षा संकट में पड़ सकती है। बहरहाल, तनाव बढ़ा तो अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने रूस को पीछे हटने को कहा, लेकिन वह अड़ा रहा। इसके बाद अमेरिका ने रूस पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे।
रूस की आर्थिक सेहत पर सबसे बुरा असर डालने वाला प्रतिबंध यह रहा कि कोई भी यूरोपीय देश रूस से कच्चा तेल नहीं खरीदेगा। दरअसल, दुनिया के लगभग 13 फीसदी कच्चे तेल का उत्पादन रूस में होता है। इस प्रतिबंध के बाद वह किसी यूरोपीय देश को तेल नहीं बेच पा रहा है। इसका सीधा असर उसके सरकारी खजाने पर पड़ा है। वहीं इसका अप्रत्यक्ष फायदा अमेरिका की कंपनियों को हुआ है। रूस पर प्रतिबंध लगते ही उन्होंने अपने यहां उत्पादन बढ़ा दिया।
ताजा हालात में जैसे-जैसे कच्चे तेल की कीमतें कम हो रही हैं, उसका उल्टा असर रूबल पर पड़ रहा है। डॉलर के मुकाबले रूबल कमजोर होने से महंगाई बढ़ रही है और वहां के कई शहरों में हडकंप की स्थिति है।
कई अर्थव्यवस्थाओं पर असर
मुद्रा की अस्थिरता से जुड़ा यह आर्थिक संकट अकेले रूस तक सीमित नहीं है। रूबल की कमजोरी का असर अन्य देशों पर पड़ने लगा है। उदाहरण के लिए मंगलवार को रूबल में आई गिरावट के बाद भारत समेत अन्य एशियाई देशों की ज्यादातर करेंसी को डॉलर के मुकाबले दबाव झेलना पड़ा।
रूस के संकट का सबसे ज्यादा असर यूरोपीय देशों पर पड़ेगा। इन देशों का आपसी कारोबार प्रभावित हो सकता है। आशंका जताई गई है कि यदि संकट नहीं टला तो कई देश मंदी की चपेट में आ सकतेहैं।
पुतिन की सबसे बड़ी परीक्षा : जैसे-जैसे यह संकट बढ़ता जा रहा है राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की सत्ता पर पकड़ कमजोर होती जा रही है। सरकार बार-बार यह जताने की कोशिश कर रही है कि स्थिति उसके नियंत्रण में है, लेकिन सच्चाई यह है कि उसका हर कदम नाकाम हो रहा है।
रूसी नागरिकों में घबराहट : रूस के लोगों में घबराहट साफ देखी जा सकती है। डेली मेल के मुताबिक, वहां बैंकों में लंबी-लंबी लाइनें लगी हैं। ये वे लोग हैं जो बैंकों में जमा अपना पैसा निकाल रहे हैं। वहीं रोजमर्रा की चीजें महंगी होती जा रही हैं। इसके चलते दुकानों और स्टोर्स पर लोगों की भीड़ है। कई शहरों में अफरातफरी का माहौल है।
हर कदम नाकाफी : मौजूदा संकट से उबरने के लिए पुतिन ने कुछ कदम उठाए हैं,लेकिन उनका कोई असर नहीं हुआ। मसलन, सेंट्रल बैंक ने ब्याज दरों को 10.5 फीसदी से बढ़ाकर 17 फीसदी कर दिया। इसके बावजूद रूबल की दिक्कतें कम नहीं हुईं। वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कम होती कीमतों ने इस प्रयास पर पानी फेर दिया। ताजा खबर यह है कि रूस ने इस संकट को टालने के लिए बैंकों में 17.1 बिलियन डॉलर की अतिरिक्त पूंजी लगाने का फैसला किया है।
आगे क्या खतरा : अगर एक दो दिन में हालात नहीं सुधरे तो आशंका है कि विदेशी निवेशक रूस में जमा अपना पैसा निकाल लेंगे। ऐसे में संकट बढ़ जाएगा। अमेरिका यदि प्रतिबंधों में ढील दे तो रूस को कुछ राहत मिल सकती है। हालांकि ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि अपने ताजा बयान में व्हाइट हाउस से कहा गया है कि ओबामा आर्थिक प्रतिबंध और सख्त करने की तैयारी में हैं। रूस की रक्षा, ऊर्जा और बैंकिंग सेक्टरों पर नए प्रतिबंद लगाए जा सकते हैं।
रूस-भारत व्यापार
-रूस के साथ भारत का 2121 करोड़ रुपए (2013-14) का एक्सपोर्ट है। चालू वित्तीय वर्ष के लिए 1085 करोड़ की राशि दांव पर लगी है।
-रूस की कई कंपनियों ने भारत में बड़ा निवेश कर रखा है। इनमें प्रमुख हैं सिस्टेमा (श्याम सिस्टेमा टेलीसर्विसेस), डीएसटी (फ्लिपकार्ट, हाउसिंग.कॉम) और फ्यूज एनपीओ (ब्रह्मोस एयरोस्पेस)।
– इसी तरह 2013-14 में भारत ने 3894 करोड़ का इम्पोर्ट किया था। चालू वित्तीय वर्ष के लिए 2351 करोड़ की रकम दांव पर है।
– भारत की कई कंपनियों का मोटा निवेश रूस में है। मसलन- ओवीएस, आईसीआईसी बैंक।
रूस का दुनिया से संबंध
-रूस के ऑइल और गैस उत्पादन का अधिकांश हिस्सा यूरोप को बेचा जाता है।
-भारत समेत कई देशों के साथ रक्षा करार हैं।
-रूसी कंपनियों ने बड़े स्तर पर दनियाभर के रियर इस्टेट बाजारों में निवेश कर रखा है।
-रूस की रोसनेफ्ट दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी है, जिसमें ब्रिटिश कंपनी बीपी समेत कई संस्थाओं का बड़ा निवेश है।
-वेनेजुएला, ब्राजील, कनाडा, यूएई, अल्जेरिया, नॉर्वे, कजाकिस्तान और वियतनाम में रोसनेफ्ट के बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं।
-यह कंपनी दुनिया की नौ बड़ी रिफाइनरियों में काम करती है। जर्मनी की चार रिफाइनरियों में इसका निवेश है।
रुपए पर भी दिखा असर
(टेबल)
दिनांक डॉलर के मुकाबले रुपया
10 दिसंबर62.02
align="justify"> 11 दिसंबर 62.33
12 दिसंबर 62.21
15 दिसंबर 62.94
16 दिसंबर 63.33
17 दिसंबर 63.61
कच्चे तेल का उत्पादन
(पाई चार्ट)
40% ओपेक देश (सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत, यूएई)
17% उत्तरी अमेरिका
13% रूस
5% चीन
5% दक्षिण अमेरिका
20% अन्य