पेट्रोलियम मंत्रालय के आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक यहां पेट्रोलियम क्षेत्र की सरकारी कंपनियों को सशक्त करने के लिए नियमों में बदलाव की तैयारी चल रही है। इस समय घरेलू बाजार में डीजल और पेट्रोल की कीमतें नियंत्रण मुक्त हो गई हैं। इसलिए इस क्षेत्र में अब निजी कंपनियां भी उतरेंगी।
ऐसे में यदि सरकारी कंपनियों को सशक्त नहीं किया गया और कच्चे तेल की खरीद की प्रकिया नहीं बदली गई, तो सरकारी कंपनियों द्वारा खरीदा गया कच्चा तेल निजी कंपनियों के मुकाबले महंगा होगा। जब कच्चा तेल ही महंगा खरीदा जाएगा, तो जाहिर है कि वह कंपनी पेट्रोल-डीजल भी महंगी ही बेचेंगी। ऐसे में निजी कंपनियों के मुकाबले सरकारी कंपनियों की बिक्री घटेगी।
इंडियन ऑयल, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम इस समय अपने उपयोग के लिए कच्चा तेल खरीदने के लिए टेंडर मंगाती है। इस प्रक्रिया में चाहे जितनी भी जल्दी की जाए, कम से कम एक सप्ताह तो लगता ही है। इतने दिन में बाजार में रेट में काफी बदलाव हो जाता है। इस लिए इस टेंडर में भाग लेने वाली कंपनियां कोट रेट पर प्रीमियम वसूलती हैं। दूसरी ओर दुनिया भर की अन्य कंपनियां स्पॉट पर फैसला लेती हैं और बाजार में जो रेट चल रहा है, उस पर क्रूड खरीदती हैं। इसलिए उन्हें क्रूड सरकारी कंपनियों के मुकाबले सस्ता पड़ता है।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक टेंडर रूट से स्पॉट कार्गो रूट पर शिफ्ट करने के लिए पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय से एक कंसेप्ट पेपर जारी हुआ है। इस पर विभिन्न पक्षों की राय ली जा रही है। उसके बाद ही कोई फैसला होगा। हालांकि ऐसा नहीं है कि टेंडर रूट से शिफ्ट करने की बात पहली बार उठी हो। इससे पहले पेट्रोलियम फेडरेशन (पेट्रोफेड) ने अंतरराष्ट्रीय फर्म मैकेंजी से एक अध्ययन कराया था।
उसमें कहा गया था कि भारत की सरकारी कंपनियों को भी नान-टेंडर रूट अपनाना चाहिए। क्योंकि न सिर्फ दूसरे देश की कंपनियां, बल्कि यहां की निजी क्षेत्र की कंपनियां भी स्पॉट कार्गो रूट के आधार पर ही क्रूड खरीदती हैं। इसमें कच्चा तेल सस्ता मिलता है साथ ही फैसला लेने के लिए काफी लचीलापन भी होती है।