राज्य शासन के उपक्रम छग हस्तशिल्प विकास बोर्ड के स्थानीय शिल्पग्राम सेवाग्राम इंटरनेशनल में कौशल विकास के तहत इन महिलाओं के अलावा दो युवकों को भी बेल मेटल का प्रशिक्षण बीआरजीएफ से दिया जा रहा है। प्रशिक्षण 7 नवंबर से शुरू हुआ है। ये छह माह तक चलेगा। हर माह प्रशिक्षार्थियों को डेढ़ हजार रुपए दिए जाएंगे। इसके अलावा दिन के भोजन की भी व्यवस्था की गई है।
इन्हें मास्टर ट्रेनर परमेश्वर नेताम प्रशिक्षण दे रहे हैं। वे बताते हैं कि इसके लिए पीतल, काली मिट्टी एवं मोम की जरूरत होती है। पीतल एवं मोम स्थानीय बाजार में उपलब्ध हो जाता है जबकि काली मिट्टी नदी के किनारे से लाई जाती है। अभी इन्हें कछुआ, हिरण एवं म्यूजिक सेट बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
मिट्टी की कलाकृति के उपर मोम की परत चढ़ा दी जाती है और फिर इसके उपर दो से तीन परत मिट्टी की चढ़ाई जाती है। इसे एक भट्टे में पकाया जाता है और दूसरे भट्टे में पीतल को गलाया जाता है फिर पीतल को मोम की खाली जगह में भर दिया जाता है। ठण्डा होने पर ये कलाकृति का रूप ले लेता है। एक किलो पीतल बाजार में 350 रुपए में आसानी से मिल जाता है।
एक किलो कलाकृति की कीमत 775 रुपए स्थानीय बाजार में है। वे बताते हैं कि छह माह का प्रशिक्षण लेने के बाद ये महिलाएं पांच सौ से हजार रुपए तक कमा सकती हैं। ये उनकी मेहनत के उपर निर्भर है। महावीर चौक के रहने वाले रोहित कुमार साहू (21) पहले ईंट भट्टे में मजदूरी करते थे। उन्हें दो सौ रुपए रोजी मिलती थी लेकिन ये मजदूरी ही थी। वे स्वरोजगार चाहते थे और इसी वजह से वे इस कला को सीख रहे हैं। नगर की ही श्रीमती पदमा देवांगन का कहना है कि वे खेत में मजदूरी करती थीं और उन्हें डेढ़ सौ रुपए तक रोजी मिलती थी। अब उन्हें यहां काम सीखने पर अच्छा लग रहा है।
देश-विदेश में मांग
बेल मेटल की मांग देश-विदेश में है। प्रशिक्षण के बाद कलाकार अपनी कलाकृतियां बोर्ड को बेच देंगे। लेकिन ये बाध्यता नहीं हैं। वे इसे ओपन मार्केट में भी बेच सकते हैं। बोर्ड का यहां एक एम्पोरियम है। इसके अलावा जगदलपुर एवं रायपुर में भी बेल मेटल के एम्पोरियम हैं। देश के सभी महानगरों बोर्ड की दुकानें हैं। यहां भी कलाकृतियां देश-विदेश के लोग खरीदते हैं। इसकी काफी मांग है।