प्राकृतिक आपदाओं के कारण भारत में 20 लाख से ज्‍यादा लोग विस्‍थापित: रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र: संयुक्‍त राष्ट्र के एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले साल प्राकृतिक आपदाओं के कारण विस्‍थापित हुए लागों की संख्‍या करीब 21.40 है. वर्ष 2013 में विस्थापितों की संख्या के लिहाज से भारत, फिलीपीन और चीन के बाद तीसरे स्थान पर था.

‘वैश्विक अनुमान 2014’ नामक इस रिपोर्ट में कहा गया कि 2013 में भूकंप या जलवायु की वजह से आयी आपदाओं से दुनिया भर में 2.2 करोड लोग विस्थापित हुए. जो कि पिछले साल संघर्षों की वजह से विस्थापित हुए लोगों की संख्या का करीब तीन गुना है.

भारत में 2008-13 के बीच कुोल 2.61 करोड लोग विस्थापित हुए जो कि चीन के बाद सर्वाधिक है. चीन में इस दौरान 5.42 करोड लोग विस्थापित हुए थे. अकेले पिछले साल भारत में प्राकृतिक आपदाओं की वजह से हुई तबाही से 21.4 लाख लोग विस्थापित हुए जबकि संघर्ष और हिंसा की वजह से विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या 64,000 थी.

नार्वे शरणार्थी परिषद के आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (आईडीएमसी) की रिपोर्ट के अनुसार, 2008 से 2013 के बीच 80.9 प्रतिशत विस्थापन एशिया में हुआ. 2013 में क्षेत्र में 14 सबसे बडे विस्थापन हुए और पांच देशों में सबसे ज्यादा विस्थापन हुआ जो कि संख्या के हिसाब से इस क्रम में थे. फिलीपीन, चीन, भारत, बांग्लादेश और वियतनाम.’

पिछले साल मई में दक्षिण एशिया में आए चक्रवात महासेन की वजह से बांग्लादेश में करीब 11 लाख लोगों को विस्थापित होना पडा था और अक्तूबर में भारत के कई राज्‍यों में हुई भारी बारिश की वजह से आई बाढ से करीब 10 लाख लोग विस्थापित हुए थे.

इसी महीने आए चक्रवात फैलिन ने पूर्वी तटीय इलाकों में बडे पैमाने पर तबाही मचायी थी जिससे लाखों लोगों को विस्थापित होना पडा था. यह चक्रवात भारत में पिछले 14 सालों में आया सबसे खतरनाक चक्रवात था.

रिपोर्ट के अनुसार लोगों को बाहर निकालने समेत बेहतर तैयारियों से हताहत होने वाले लोगों की संख्या को 50 से कम पर सीमित करने में मदद मिली थी. 2008-13 के बीच बार बार आपदाओं के आने से विस्थापित हुए लोगों की संख्या के हिसाब से चीन, भारत, फिलीपीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया और अमेरिका पहले सात स्थान पर थे.

रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले चार दशकों में आपदाओं की संख्या दोगुनी से ज्यादा हो गयी है जिसका कारण मुख्यत: विकास और विशेषकर संवेदनशील देशों में शहरी आबादी की सघनता है.

नार्वे शरणार्थी परिषद के महासचिव जैन इगेलैंड ने कल यहां कहा, ‘खतरे की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों में ज्यादा से ज्यादा लोगों के रहने एवं काम करने की वजह से यह बढती प्रवृति जारी रहेगी. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से भविष्य में इसके बढने की आशंका है.

संयुक्त राष्ट्र के उपमहासचिव जैन एलिएसन ने कहा कि यह रिपोर्ट ‘बिल्कुल सही समय’ पर आयी है क्योंकि यह बढती और तेजी से आती आपदाओं के संदर्भ में आज के समय में पूर्व चेतावनी प्रणालियों और आपातकालीन निकासी की जरुरत को दिखाती है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *