नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। महंगाई रोकने की मोदी सरकार की
प्रस्तावित मुहिम को सूखे की आशंका से झटका लग सकता है। नए कृषि व खाद्य
मंत्रियों के लिए सूखा पहली चुनौती होगा। समुद्र में बन रही आफत अलनीनो से
भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून के प्रभावित होने का खतरा है। बारिश के बादल
भले ही न आएं, मगर खरीफ फसलों पर संकट के बादल जरूर छा गए हैं। इससे महंगाई
से दो-दो हाथ करने में सरकार को पसीने छूटेंगे। मोदी सरकार की पहली
प्राथमिकता महंगाई से लोगों को राहत दिलाना है।
सूखे से खेती पर पड़ने वाले कुप्रभाव को कम करने के लिए कृषि मंत्रालय
ने अभी से वैकल्पिक खेती की तैयारियां शुरू कर दी है। नवगठित मोदी सरकार के
समक्ष यह एक बड़ी चुनौती है। इसका मुकाबला करना आसान नहीं होगा। महंगाई के
संकट से निजात दिलाने के लिए कृषि मंत्रालय के साथ खाद्य व उपभोक्ता मामले
मंत्रालय की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है। खाद्यान्न की उपलब्धता बनाए रखने के
लिए स्टॉक का भंडारण जरूरी है। इसके साथ ही साथ उन राज्यों में अनाज की समय
से आपूर्ति सुनिश्चित करना भी जरूरी जहां अनाज का उत्पादन कम होता है।
कृषि मंत्रालय ने साढ़े पांच सौ से अधिक जिलों के लिए वैकल्पिक खेती
की योजना संबंधित जिलों तक पहुंचा दी है। कृषि मंत्रालय के अफसर मौसम विभाग
से लगातार संपर्क में हैं। ये अधिकारी राज्यों का दौरा कर उनकी तैयारियों
का जायजा ले रहे हैं।
मोदी सरकार के नए कृषि और खाद्य मंत्री को सूखे का मुकाबला करने वाली
वैकल्पिक योजनाओं को गति देने पर जोर देना होगा। सबको भोजन का अधिकार देने
वाला खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने के लिए 6.12 करोड़ टन अनाज की जरूरत
होगी। खाद्य मंत्रालय का दावा है कि सरकारी स्टॉक में पर्याप्त अनाज है।
लेकिन सूखा पड़ने की दशा में अनाज की यह मात्रा खाद्य वस्तुओं की महंगाई
रोकने के लिए नाकाफी साबित हो सकती है। खाद्य मंत्रालय इसे बखूबी समझता भी
है। तभी तो गेहूं की खरीद में तेजी लाई गई है। नतीजतन इसकी नई खरीद का
स्टॉक पिछले साल की सीमा को पार कर गया है।
गेहूं व चावल की उपलब्धता के बावजूद दाल और खाद्य तेलों की मांग को
पूरा करने के लिए आयात एकमात्र सहारा होगा। भारत की घरेलू मांग बढ़ने से
वैश्विक बाजार में इन जिंसों के मूल्य आसमान छू सकते हैं। समय रहते मांग व
आपूर्ति का आकलन कर इन जिंसों का आयात सौदा नहीं कर लिया गया, तो महंगाई पर
काबू पाना संभव नहीं होगा।