परदेस में शादी– मनीषा सिंह

भारत समेत पूरी दुनिया में महिलाएं अच्छे जीवन की चाह में विदेशी जमीन पर बसे या काम कर रहे दूल्हे से शादी के बाद होने वाली धोखाधड़ी की घटनाओं से बुरी तरह त्रस्त रही हैं। ऐसे मामलों की व्यापक पड़ताल के लिए गठित गोयल समिति ने अप्रवासी भारतीय दूल्हों को ब्याही हिंदुस्तानी लड़कियों की तकलीफों का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट सरकार को दी है, जिसमें पत्नी के साथ ज्यादती करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का प्रावधान सुझाया गया है। अभी तक ऐसी शादियों में देखने में यह आया है कि विदेश में बसे अप्रवासी दूल्हे इस बात को लेकर आश्वस्त रहते हैं कि वे अपनी भारतीय पत्नी के साथ कैसा भी सलूक करें, भारत सरकार उनके खिलाफ कुछ नहीं कर सकती। 2014 में ही राष्ट्रीय महिला आयोग को 346 शिकायतें मिली थीं। इससे अंदाजा हो जाता है कि समस्या असल में कितनी बड़ी है। गोयल समिति का सुझाव है कि भारत से ब्याह कर पत्नी को विदेश ले जाने के बाद उससे बदसलूकी करने वाले अप्रवासी दूल्हों का पासपोर्ट रद्द कर उन्हें भारत वापस भेजना चाहिए। समिति ने अप्रवासी शादी के मामलों में हर विवाह का अनिवार्य पंजीकरण करने और पासपोर्ट, कार्यस्थल, आवास का पूरा पता दिए बगैर शादी ही पंजीकृत नहीं करने की सलाह दी है।


पहले ज्यादातर शादियां पारिवारिक मित्रों, पंडितों और जान-पहचान के दायरे में काम करने वाले बिचौलियों के जरिए संपन्न कराई जाती थी, जिनमें ऐसी धोखाधड़ी अक्सर नहीं होती थी। महिलाओं में विदेश में बसे अप्रवासी दूल्हे से शादी रचाने का भी ज्यादा चलन नहीं था। लेकिन इधर जबसे शादी कराना एक कारोबार हो गया है और महिलाओं में विदेश में बसने की चाह बढ़ी है, शादी के विज्ञापनों के माध्यम से होने वाले संबंधों की संख्या बढ़ी है। अक्सर ऐसे रिश्तों में पर्याप्त छानबीन नहीं हो पाती है। पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में तो ऐसे अनेक मामले सामने आए हैं, जब शादी करके कुछ दूल्हे या तो विदेश भाग जाते हैं या फिर इन दुल्हनों को विदेश ले जाने के बावजूद वहां दूसरी शादी रचा लेते हैं। ऐसी स्थिति में भारतीय दुल्हनें या तो नौकरानी बनकर रहने को मजबूर होती हैं या फिर प्रताड़ना झेलते रहती हैं। अब ऐसे ज्यादा मामले ब्रिटेन से भी आ रहे हैं, जिसे आम तौर पर एक सहिष्णु मुल्क माना जाता है। भारत का विदेश मंत्रालय दावा करता रहा है कि वह विदेश में बसे भारतीयों से शादी के मामलों में फर्जीवाड़े से भारतीय दुल्हनों को बचाने के लिए कई उपाय करता है, लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसी घटनाओं की प्रभावी रोकथाम नहीं हो सकी है।


इसके अलावा करीब डेढ़-दो दशक से यूरोपीय और अमेरिकी देशों में बसे भारतीयों के अलावा पाकिस्तानी, बांग्लादेशी परिवारों में भी जबरन शादियों का चलन देखा जा रहा है। उनकी देखादेखी अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और पूर्वी यूरोप से ब्रिटेन में आकर बसे परिवारों में भी यह चलन जोर पकड़ने लगा है। सच यह है कि कानून के बावजूद जबरन शादी के मामले की रोकथाम संभव नहीं हो पा रही है। कर्मा निवार्णा जैसी संस्थाओं के मुताबिक सबसे ज्यादा उदार माने जानेवाले मुल्क ब्रिटेन में ही हर साल पांच हजार शादियां जोर-जबर्दस्ती से कराई जाती हैं। ये शादियां बेहद दबाव के बीच गुपचुप ढंग से करा दी जाती हैं, इसीलिए इस संबंध में कानूनी उपायों की जरूरत पड़ रही है।विदेशों में ऐसे कानूनों और ऐसे उपायों की जरूरत क्यों पड़ रही है, इसके लिए ज्यादा गहरी पड़ताल करने की जरूरत नहीं है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि एशियाई देशों से वहां जाकर बसे लोगों ने भौतिकता के मामले में तो काफी तरक्की कर ली है, लेकिन वे यहां से ढोकर ले जाए गए बुरे रिवाजों और सामाजिक कुरातियों की मानसिकता से पिंड नहीं छुड़ा पा रहे हैं।


ब्रिटेन, अमेरिका या किसी और विकसित मुल्क में रहते हुए भी वे न तो शादी-ब्याह जैसे मामलों में जाति-गोत्र देखने की जिद में पीछे हैं और न ही परिवारों में पीढ़ियों से चली आ रही प्रदूषित परंपराओं का पालन करने के मामले में। एक ओर ये परिवार अपने बच्चों पर जबरन शादी थोपते हैं, तो दूसरी ओर अगर कोई नौजवान अपनी मर्जी से शादी करने की गुस्ताखी करता या करती है, तो उस पर भयानक जुल्म ढाए जाते हैं। ब्रिटेन में कई युवाओं, खास तौर से लड़कियों की हत्या परिवार वालों ने की है और इन मामलों को वहां के मीडिया ने खूब उछाला है। नया कानून लागू होने पर और कर्मा निवार्णा जैसी दान संस्थाओं की सलाहों पर अमल से ब्रिटेन में तो जबरन शादी के मामलों में कमी आने की उम्मीद है पर क्या दूसरे देशों में ऐसा होना मुमकिन है।

अमूमन ऐसी शादियों का नतीजा यह होता है कि या तो जीवन भर के संबंध खत्म कर लिए जाते हैं और अगर परिवार के पुरुष ज्यादा दबंग हुए तो दुल्हन को बेसहारा छोड़ दिया जाता है। वोट की राजनीति के नजरिए से देखें तो ब्रिटेन के राजनेता भी वहां बसे एशियाई तबके की नाराजगी मोल नहीं ले सकते। हालांकि बचावकारी का कानूनों का लागू होना और बचाव के सुझावों का प्रकाश में आना दर्शाता है कि समाज सुधार की एक बड़ी पहल किसी राजनीतिक मजबूरी के कारण हाशिए पर नहीं चली जाती है। इसलिए जरूरी है कि भारत खुद भी विदेश में शादी रचा रही महिलाओं की समस्याओं को सुलझाने के लिए कठोर कायदे-कानून बनाए और उन्हें सख्ती से लागू करे। पर विडंबना यह है कि सामाजिक मसलों पर नियम-कानून बनाने में हमारी सरकारें राजनीतिक कारणों से बहुत अधिक हिचकिचाती हैं। इसका एक उदाहरण है शादी के पंजीकरण का मामला। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में ही निर्देश दे दिया था कि विवाह के पंजीकरण को अनिवार्य करने के लिए कानून बनाया जाए। पर इस आदेश के बावजूद आरंभ में कुछ ही राज्यों ने ऐसे नियम बनाए और वह भी सिर्फ हिंदुओं के लिए। इधर यूपी की सरकार ने जरूर इस मामले में तेजी दिखाई है लेकिन अन्य राज्यों की सरकारें अभी भी विवाह पंजीकरण को लेकर अनमना रुख दिखा रही हैं।


असल में, हमारे देश का राजनीतिक नेतृत्व शादी-ब्याह जैसे संवेदनशील मसलों में हाथ डालने के जोखिम से बचना चाहता है। तीन तलाक जैसे मामले में इधर सरकार ने अवश्यएकसख्त रुख दिखाया है, अन्यथा ज्यादातर ऐसे मामलों में वह हाथ खींच लेना ही बेहतर समझता है। यही वजह है कि हमारे सामाजिक जीवन को व्यवस्थित करने का काम भी अदालतों के जरिए हो रहा है। यह एक बड़ी विडंबना ही है। शायद इसका कारण यह है कि ये सारे मामले महिलाओं के अधिकारों से जुड़े होते हैं। समाज अब भी स्त्रियों को लेकर सामंती नजरिए से मुक्त नहीं हो पाया है, इसलिए विवाह में उनकी मर्जी और शादी के बाद उनकी स्थिति के बारे में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती है। इसी कारण शादी के ज्यादातर मामलों में महिलाएं ही पीड़ित होती हैं। उन्हें हमारा समाज और सरकार मिल कर कोई राहत दिला पाएं, तो ही महिलाओं की स्थिति में कुछ और सुधार की उम्मीद की जा सकती है।

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