हमारे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी लड़ाई थी अगस्त क्रांति और इस आंदोलन की विशेषताएं इसे आजादी की लड़ाई के दूसरे तमाम आंदोलनों से अलग करती हैं। यहां मैं यह स्पष्ट कर दूं कि अन्य आंदोलनों से इसके अलग कहने का मतलब किसी आंदोलन के अच्छे-बुरे की बात नहीं है, बल्कि इसकी अहमियत को बताना मेरा मकसद है। जैसे दांडी यात्रा का अपना एक अलग चरित्र था। असहयोग आंदोलन की अपनी विशेषताएं थीं, इसी तरह ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की भी थीं।
मगर यह आंदोलन इस मायने में सबसे खास था कि इसे देश भर के अवाम का स्वत:स्फूर्त समर्थन मिला। जब 8 अगस्त को कांग्रेस ने अंग्रेजों को यह कहने के लिए प्रस्ताव पारित किया कि आप भारत से जाएं, और गांधी जी ने ‘करो या मरो’ का आह्वान किया, तो असल में मकसद ठीक उसी समय से वह आंदोलन शुरू करना नहीं था, बल्कि इसके जरिये यह संदेश दिया जा रहा था कि हमें यह काम करना है। उस समय तो गांधी जी ने कहा था कि आंदोलन को विधिवत शुरू करने में दो-तीन हफ्ते लगेंगे, क्योंकि मैं पहले वायसराय से बात करूंगा, जैसा कि मैं हमेशा कोई आंदोलन शुरू करने से पहले करता आया हूं। गांधी जी हमेशा ब्रिटिश हुकूमत को यह बताते थे कि हम यह कार्यक्रम करने जा रहे हैं और उस पर अंगे्रजों की सकारात्मक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा भी करते थे। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के प्रस्ताव पारित करने के वक्त गांधी की यही भावना थी। परंतु 8 अगस्त की रात और 9 तारीख की सुबह स्वतंत्रता संग्राम के राष्ट्रीय नेतृत्व को बड़े पैमाने पर गिरफ्तार कर लिया गया। मुंबई में गांधीजी और उनके सहयोगियों को हिरासत में ले लिया गया, तो राज्य स्तर पर भी कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को उठा लिया गया। जाहिर है, यह अचानक उठाया गया कदम नहीं था। ब्रिटिश सरकार ने पहले से ही अपनी रणनीति बना रखी थी।
देश के लोग इतने बड़े पैमाने पर अपने नेताओं की गिरफ्तारी से भौंचक रह गए। इस पर उनकी जबर्दस्त प्रतिक्रिया सामने आई और 9 अगस्त को ही देश के कई इलाकों में बड़ी-बड़ी रैलियां हुईं, खासकर शहरों में लोग हजारों की तादाद में सड़कों पर उमड़ आए। पटना, दिल्ली, बंबई (अब मुंबई) में खास तौर से छात्र और नौजवान आंदोलन करने लगे। 9 अगस्त को ही कई जगहों पर गोलियां भी चलीं, जिसमें अनेक लोग मारे गए। यह आंदोलन किसी के आह्वान पर नहीं शुरू हुआ था, क्योंकि कांग्रेस और गांधी जी ने अभी तो यह तय ही नहीं किया था कि किस दिन से आंदोलन का आह्वान किया जाए। उन्होंने उस वक्त सिर्फ संकल्प लिया था कि हमें आंदोलन करना है। साथ ही यह भी संकल्प लिया था कि अब पीछे नहीं हटना है, यानी ‘करो या मरो।’
उस समय तक देश की आजादी की आवाज भारत के कोने-कोने तक पहुंच गई थी और स्वतंत्रता संग्राम की पहुंच समाज के सभी तबकों तक बन चुकी थी। लोगों में यह भावना बलवती हो उठी थी कि अंग्रेजों को अब यह देश छोड़ना ही होगा और इसके लिए वे कोई लंबा इंतजारकरने के मूड में भी नहीं थे। एक तरह से शीघ्र आजादी की भावना गहरी हो चली थी। इस आंदोलन ने दिखाया कि आजादी की राष्ट्रीय भावना अब किस चरम पर है।
आम तौर पर किसी भी आंदोलन की रूपरेखा बनती है। नेतृत्व अपने कैडर तैयार करता है कि एक खास तिथि से सत्याग्रह शुरू होगा और अमुक-अमुक लोग अपनी क्रमवार गिरफ्तारियां देंगे। फिर हम स्कूल-कॉलेजों का बहिष्कार करेंगे या विदेशी वस्त्रों का त्याग करेंगे, लेकिन अगस्त क्रांति में ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं बनाया गया था। यकीनन कांग्रेस के आंदोलन की तैयारी चल रही थी, लेकिन उसके नेताओं की अचानक गिरफ्तारी ने इसे तत्काल भड़का दिया। कांग्रेस की तैयारी का अंदाज इस बात से लगता है कि उसे मालूम था कि विश्व युद्ध के दौरान वह अंग्रेजों से मोर्चा लेने जा रही है और इस पर ब्रिटिश हुकूमत की प्रतिक्रिया काफी सख्त होगी। इसीलिए लोगों को क्या निर्देश देने हैं, यह भी सोच लिया गया था। गांधी जी ने अपने भाषण में कहा भी था कि ‘इच मैन विल बी ओन लीडर’ यानी हर सेनानी अपना नेता खुद होगा। वह अपनी बुद्धि और विवेक से काम करेगा। चूंकि उसे अच्छी तरह से प्रशिक्षित किया जा चुका है कि किस स्थिति में क्या करना चाहिए, इसलिए कोई भी कार्यकर्ता नेतृत्व के निर्देश का इंतजार नहीं करेगा। मैं मानती हूं कि यह इस आंदोलन की खास विशेषता थी।
पहले के आंदोलन में नेतृत्व को काफी वक्त मिल जाता था। अंग्रेज उन्हें तुरंत उठाकर जेल में नहीं डाल देते थे। नमक सत्याग्रह में ही गांधी जी कितने दिनों तक पैदल चले, 6 अप्रैल को दांडी में नमक बनाकर कानून तोड़ने के भी काफी दिनों के बाद उनको हिरासत में लिया गया। इसी तरह जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल को भी काफी समय मिला करता था, जिससे वे आंदोलन की दशा-दिशा तय कर पाते थे। मगर अगस्त क्रांति ने हर एक सेनानी को अपना नेता बना दिया था। इस आंदोलन में लोगों ने ब्रिटिश सत्ता के प्रतीकों जैसे थानों, स्टेशनों पर कब्जा कर लिया था, बडे़ पैमाने पर ग्रामीण नौजवानों ने इसे गांव-गांव में पहुंंचा दिया। जाहिर है, 1857 के बाद सबसे ज्यादा दमन इसी आंदोलन का हुआ। कांग्रेस का अपना आकलन था कि 10 हजार से ज्यादा भारतीय इसमें शहीद हुए थे। इन शहादतों ने आजादी की निर्णायक पटकथा लिख दी।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)