नेट न्यूट्रैलिटी के लिए खतरा बनकर आया ऐड ब्लॉकिंग– मुकुल श्रीवास्तव

माध्यम कोई भी हो, जब तक उसे विज्ञापन का साथ नहीं मिलता, तब तक उसका विस्तार संभव नहीं है। माध्यमों की प्रगति का यह सफर टीवी और अखबार से होते हुए अब इंटरनेट तक पहुंच गया है। अभी हम इंटरनेट विज्ञापनों के साथ जीना सीख ही रहे हैं, मगर बाजार इंटरनेट के माध्यम से कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा लेना चाहता है। असल में, कंटेंट की दृष्टि से टीवी व अखबार के मुकाबले इंटरनेट का चरित्र ज्यादा लचीला है, इसलिए इंटरनेट अचानक विज्ञापनों से भर उठा है। अन्य माध्यमों की तरह इस पर भी विज्ञापनों का नियमन करना लगभग असंभव है। लेकिन भारत जहां इंटरनेट क्रांति का अगुआ बनकर उभर रहा है, वहीं भारतीय उपभोक्ता इंटरनेट पर विज्ञापनों के इस्तेमाल में भी जागरूक उपभोक्ता बनकर उभर रहे हैं।


पेजफेयर संस्था के एक अध्ययन में पाया गया कि मार्च 2016 तक भारत में 12.2 करोड़ भारतीय स्वतंत्र रूप से मोबाइल ब्राउजर द्वारा ऐड ब्लॉकिंग का इस्तेमाल कर रहे थे। यहां जानना जरूरी है कि भारत जैसा विकासशील देश, ऐड ब्लॉकिंग उपयोग के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है, जबकि चीन पहले स्थान पर। जहां दिसंबर 2015 में 27.5 करोड़ लोग पूरी दुनिया में मोबाइल ऐड ब्लॉकर तकनीक का इस्तेमाल कर रहे थे, वहीं दिसंबर 2016 में यह आंकड़ा बढ़कर 61.5 करोड़ हो गया, जिनमें 62 प्रतिशत लोग यह तकनीक मोबाइल में इस्तेमाल कर रहे थे। ऐड ब्लॉकिंग एक प्रकार का सॉफ्टवेयर है, जो मोबाइल, डेस्कटॉप, स्मार्टफोन व टेबलेट आदि डिजिटल उपकरणों पर वेबपेज व वेबसाइट आदि द्वारा आने वाले अनचाहे विज्ञापनों, पॉपअप और स्पैम को रोकता है। वेब सर्फिंग करते वक्त हमारे स्मार्टफोन पर अचानक कई ऐसे अनचाहे विज्ञापन आ जाते हैं, जिनका हमारी रुचि से कोई लेना-देना नहीं होता है। यह अनुभव मानसिक रूप से बहुत कष्टदायी और आर्थिक रूप से डाटा व धन का नाश करने वाला होता है, जिसमें हमें अनावश्यक रूप से विज्ञापनी अराजकता बर्दाश्त करनी पड़ती है।


ऑनलाइन विज्ञापन के इस संसार में दो तरह के विज्ञापन प्रदाता होते हैं। एक वे, जिनके प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हुए ऑनलाइन विज्ञापन दिए जाते हैं, जैसे फेसबुक, गूगल और यू-ट्यूब आदि, जो खुद तो कोई कंटेंट नहीं बनाते, बल्कि दूसरों के कंटेंट का इस्तेमाल करते हुए अपनी पाठक/दर्शक संख्या बढ़ाते हैं। दूसरे वे विज्ञापन, जो हमारी डिवाइस में किसी अन्य उत्पाद के साथ आ जाते हैं। इनमें कुछ मेल वायर और स्पाई वायर भी हो सकते हैं, जो डिवाइस व डाटा के लिए हानिकारक होते हैं। ऐसे विज्ञापन, जो उपभोक्ता की स्वीकृति के बगैर आ जाते हैं, ज्यादा कष्टप्रद होते हैं, क्योंकि ये इंटरनेट पर हमारे काम में बाधा डालते हैं। फिर इनका स्थान और वक्त भी निश्चित नहीं होता।


ऐड ब्लॉकिंग ब्राउजर से पेज स्पीड में काफी तेजी आ जाती है, क्योंकि इससे अनावश्यक कंटेंट पहले ही ब्लॉक हो जाता है। इसी रणनीति के तहत मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनियों ने ऐड ब्लॉकर सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनियों के साथ समझौता करना शुरू कर दिया है। इसके तहत वे उन्हीं कंपनियों के विज्ञापन अपने फोन पर दिखाएंगी, जिनसे उनका करार है।लेकिन तस्वीर का एक और रुख भी है। ऐड ब्लॉकर का ज्यादा इस्तेमाल ऑनलाइन विज्ञापनों से होने वाली आय पर असर डालता है, जिसमें वीडियो गेम बनाने वाली कंपनियां ज्यादा प्रभावित हो रही हैं। दूसरा खतरा नेट न्यूट्रैलिटी को है, जिसमें सूचना संबंधी विज्ञापन आते हैं और जो भी सामग्री इंटरनेट पर अपलोड होगी, जरूरी नहीं कि वह उपभोक्ता के सर्च करने पर देखी ही जा सके। इसका कारण मोबाइल ब्राउजर द्वारा ऐड ब्लॉकिंग है। वह केवल उन्हीं विज्ञापन साइट्स को प्रदर्शित करेगा, जिन कंपनियों का समझौता मोबाइल ब्राउजर से हो चुका होगा। वहीं बाजार का एक बड़ा हिस्सा, जो मुफ्त में इंटरनेट और सोशल मीडिया द्वारा अपने प्रोडक्ट का प्रचार कर रहा था, इससे महरूम हो जाएगा। देखना होगा कि यह तकनीकी बदलाव नेट न्यूट्रैलिटी को खत्म कर करने वाला हो सकता है या नहीं। इस मौके का फायदा गूगल जैसी सर्च इंजन व सोशल मीडिया साइट्स उठाने के लिए तैयार हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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