भोपाल। रुमनी घोष। मंदसौर में 27 नीलगाय को पकड़ने में लगभग 41 लाख रुपए लगे हैं। 19 दिन तक चली इस कार्रवाई में वन विभाग के भारी भरकम अमले के साथ गांववाले भी जुटे रहे। यही नहीं दो घंटे हेलिकॉप्टर भी उड़ा। घोड़ा भी दौड़ाया गया। पकड़े गए नीलगाय की तुलना में खर्च बहुत ज्यादा है। इस बात को मानते हुए वन विभाग के अफसरों ने बताया कि देशभर में ओपन एरिया में पहली बार किसी जानवर को पकड़ने के लिए बोमा पद्धति का उपयोग किया गया।
मध्यप्रदेश में मंदसौर, नीमच,रतलाम, सतना, छतरपु, पन्ना, भिंड, मुरैना इलाके में नीलगायों द्वारा खेतों में लगी फसलें नष्ट करने की समस्या सबसे ज्यादा उभरकर आ रही है। इन्हीं इलाकों में ही 50 से ज्यादा नीलगाय है।
इसके चलते विधानसत्र के बजट सत्र में पहले दिन से ही विधायकों और सरकार के लिए नीलगाय बड़ा मसला नजर आया। इस पर नीलगाय द्वारा फसल खराब करने पर किसानों को मुआवजा दिए जाने, खेत पर ही मारने की अनुमति दिए जाने से लेकर इन्हें पकड़ने पर हुए खर्च को लेकर कई सवाल लगे। उनमें सबसे रोचक जवाब मिला विधायक हरदीप सिंह डंग के सवाल का।
वन मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने लिखित में जवाब दिया कि मंदसौर में नीलगायों को पकड़ने के लिए बोमा पद्धति का इस्तेमाल किया गया। इसके लिए टेंट (पोल, एंगल, पाईप, त्रिपाल) ग्रीन नेट, बायररोप टोप, कॉटन, हार्डवेयर, सामग्री, मेगाफोन, ग्रीस, रिंग, पाना, फिक्स पाना, डिबरी पाना, फ्लोरोसेंट जैकेट, तार, कील, टी बोल्ट, पूली, केबल, फ्लू लट्ठा प्रेशर हार्न स्प्रे पंप ब्लैक डाई, जूते कवर्ड, स्पेक्टेकल्स, मंकी कैप, टोर्न बक्कल , इलेक्ट्रिक पाईप, बांस चाड़ी, निसन्नाी का उपयोग किया गया।
इसके अलावा हेलीकॉप्टर,घोड़ा, ट्रक, कैंटर भी लगे। कुछ सामान किराए पर भी लिया गया। खरीदी और किराए पर लिए गए सामानों पर 19 लाख 82 हाजर 757 रुपए खर्च हुए। अन्य खर्चों को भी जोड़ लिया जाए तो वन विभाग के मुताबिक लगभग 41 लाख रुपए खर्च हुए हैं।
बोमा पद्धति अफ्रीका के जंगलों में प्रचलित है। देशभर में मंदसौर में पहली बार ओपन एरिया में इसका प्रयोग किया गया। इस तकनीक पर लगभग 41 लाख रुपए खर्च हुए हैं। पहली बार सामग्री जुटाने की वजह से खर्च ज्यादा हुआ है। अगली बार सारी प्रक्रिया एक से डेढ़ लाख में ही हो जाएगा। हेलिकॉप्टर का उपोयग हमिंग के लिए दो घंटे किया गया। हेलीकॉप्टर तो नि:शुल्क उपलब्ध हो गया था। फ्यूल (तेल) और पायलट का खर्चा देना पड़ा। यू.के शर्मा, डीएफओ, मंदसौर
ये है बोमा पद्धति
– 1800 मीटर लंबा और 10 फीट ऊंचा वी के आकार की टेंट नुमा ऐसी आकृति बनाई गई कि नीलगायों को लगे कि वे जंगल या खुले एरिया में ही है।
– टेंट का दूसरा सिरा ट्रक में खुलता है। नीलगायों को ओपन एरिया से हांककर लाते हुए ट्रक में बंद कर दिया जाता है। फिर जंगलों में छोड़ दिया जाता है।
विधायक केपी सिंह ने मुद्दा उठाया था कि पकड़ने मेंभारी खर्च और मुआवजे से बचने के लिए सरकार किसानों को नीलगाय को मारने की अनुमति दे? इस पर वन मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने कहा- यह व्यवहारिक नहीं है। इसका क्या हल हो सकता है? यह जानने के लिए नईदुनिया ने कुछ वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञों से चर्चा की तो उन्होंने बताया नीलगाय की मांस खाने के काम आता है। यदि सरकार लाइसेंस दे तो इसका मांस एक्सपोर्ट हो सकता है और अच्छी आय हो सकती है। हालांकि इसके लिए कई नियमों में संशोधन कर रास्ता निकालना होगा।