मुंबई। एक इंजेक्शन या सीरिंज के निर्माण की कीमत करीब दो रुपए होती है, जबकि उसे पांच गुना तक अधिक कीमत में बेचा जाता है। हालांकि, इसका प्रॉफिट भले ही इकाई अंक में दिखता है। मगर, जब बात करोड़ों और अरबों इंजेक्शन की बिक्री की हो, तो फायदा कितना होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में सालाना करीब तीन अरब इंजेक्शन्स की बिक्री होती है। यानी जब देशभर के मरीजों के हिसाब से देखा जाए, तो फार्मा कंपनियों को होने वाला मुनाफा अरबों रुपए में हो जाता है।
कीमतों का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि लोकप्रिय हिप इंप्लांट की कीमत करीब 8,906 रुपए है, लेकिन मरीज के बिल में इसे 1.29 लाख रुपए दिखाया जाता है। यानी 1,448 फीसद का मुनाफा होता है। यह दो मामले तो नजीर हैं कि किस तरह देशभर में लोगों को चिकित्सा के नाम पर लूटा जा रहा है।
गौरतलब है कि एक दिन पहले ही नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) ने कार्डिक स्टेंट की कीमत 29,600 रुपए तय कर दी थी। NPPA ने यह कदम कई मरीजों की शिकायत के बाद उठाया था। कई मामलों में मरीजों से स्टेंट की इंपोर्ट कीमत से 700 गुना अधिक मुनाफा वसूल किया गया था।
देशभर में सालाना करीब छह लाख से अधिक स्टेंट बिकते हैं। इसके अलावा सीरेंज और आईलेंस को भी कीमत से कहीं अधिक दाम पर बेचा जाता है। एक डिस्ट्रीब्यूटर ने बताया कि घुटने या हिप्स में लगने वाले आम आर्थोपैडिक इंप्लांट्स में 300, 600 या इससे अधिक मुनाफा वसूलना आम बात है।
घुटने के प्रत्यारोपण में भारत में इस्तेमाल किया जाने वाला एक इंप्लांट केवल 9,264 रुपये में आयात किया जाता है, लेकिन इसे मरीजों को 46,000 रुपए में बेचा जाता है।