नोटबंदी के बाद शहरों के साथ-साथ गांवों को भी कैशलेस बनाने की बात चली थी। ऐसे में केरल के मलप्पुरम को देश का पहला पहला ‘कैशलेस आदिवासियों का गांव’ घोषित कर दिया गया। लेकिन वहां की असलियत कुछ और ही है। इंडियन एक्सप्रेस को जानकारी मिली है कि 27 दिसंबर को मलप्पुरम के कलैक्टर अमित मीना ने 27 लोगों के खाते में 5-5 रुपए डालकर जिले को ‘कैशलेस’ घोषित कर दिया था। हालांकि, वह डिजीटल ट्रांजेक्शन कुछ ही दिनों में बंद हो गया। कलेक्टर द्वारा कैशलेस हो जाने की घोषणा ‘मेरा मलप्पुरम, मेरा डिजिटल’ के तहत की गई थी। इसका उद्देश्य केरल के मलप्पुरम को पहला कैशलेस जिला बनाने की थी। इसके लिए पनिया जनजाति के 400 लोगों को वाई-फाई भी दिया गया था। जिसकी मदद से वे लोग एसबीआई के SBI Buddy ऐप से पेमेंट कर सकें। इसके लिए उन्हें ट्रेनिंग भी दी गई थी।
लेकिन एक हफ्ते बाद ही वाईफाई की सुविधा सिर्फ उन 10 घरों तक सिमट कर रह गई जो कि उस कम्यूनिटी हॉल के पास हैं जहां पर मोडम लगा हुआ है। वह भी पूरे वक्त के लिए नहीं मिलता। क्योंकि उस कम्यूनिटी हॉल में बिजली का कनेक्शन नहीं है। इसके लिए जब आसपास रहने वाले लोग वापस आकर उस बिल्डिंग को खोलकर अपने घर के कनेक्शन से उसे बिजली देते हैं जब जाकर इंटरनेट चलता है।
हालांकि, वहां रहने वाले आदिवासीयों को इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि ज्यादातर लोग को रोजाना कैश में सैलरी मिलती है जिसे वे बैंक में बहुत कम ही जमा करवाते हैं। वहां के लोग कहते हैं कि उन्हें इंटरनेट से पहले पानी और टॉयलेट की कमी से निजात पानी है। केरल को वहां के मुख्यमंत्री पिनारी विजयन ने 1 नवंबर को ‘खुले में शौच मुक्त’ घोषित कर दिया था। लेकिन गांववालों का कहना है 103 घरों में से कुल 15 घरों में ही टॉयलेट की सुविधा है। बाकी लोगों को पास में बने आम शौचालय का इस्तेमाल करना पड़ता है या फिर खुले में ही जाना पड़ता है।