सच्चर रिपोर्ट के 10 साल, नहीं बदला मुसलमानों का हाल

भारतीय मुसलमानों की स्थिति को लेकर सच्चर कमिटी की 403 पन्‍नों की रिपोर्ट को 30 नवंबर 2006 को संसद में पेश किया गया था। दिल्‍ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस राजिंदर सच्चर की अध्‍यक्षता में यूपीए के पहले कार्यकाल में यह कमिटी बनाई गई थी। दो साल में कमिटी ने रिपोर्ट दे दी थी। इसमें मुसलमानों के सामने आ रही कठिनाइयों के बारे में बताया गया था और इन्‍हें दूर करने की सिफारिश भी की गई थी। रिपोर्ट ने मुसलमानों की स्थिति एससी और एसटी से भी नीचे बताई थी। इसमें सबसे बड़ी बात यह निकलकर आई थी कि मुस्लिमों की जितनी आबादी है उस अनुपात में आईएएस और आईपीएस अधिकारी नहीं है।

सरकार के डाटा का अध्‍ययन करने पर सामने आता है कि रिपोर्ट सौंपे जाने के 10 साल बाद भी बड़ा बदलाव नहीं आया है। कुछ मामलों में तो बातें और ज्‍यादा बिगड़ गई हैं। उदाहरण के तौर पर पुलिस में 7.63 प्रतिशत मुस्लिम थे जो साल 2013 में घटकर 6.27 प्रतिशत रह गए हैं। इसके बाद से सरकार ने धर्म के आधार पर पुलिसकर्मियों का डाटा जारी करना बंद कर दिया। सच्चर कमिटी की रिपोर्ट के पहले और बाद में भी मुसलमानों का औसत मंथली पर कैपिटा एक्‍सपेंडिचर सबसे कम रहा। साल 2001 की तुलना में मुस्लिम पुरुषों की काम में भागीदारी थोड़ी सी बढ़ी है। साल 2001 में यह प्रतिशत 47.5 प्रतिशत था जो 2011 में 49.5 प्रतिशत हो गया। वहीं महिलाओं में तो मामूली वृद्धि दर्ज की गई।

आईएएस और आईपीएस के आंकड़े ज्‍यादा पोल खोलते नजर आते हैं। सच्चर कमिटी ने बताया था कि आईएएस में 3 और आईपीएस में 4 प्रतिशत मुस्लिम हैं। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार एक जनवरी 2016 को यह प्रतिशत 3.32 और 3.19 हो गया। आईपीएस में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व में कमी का एक बड़ा कारण मुस्लिम प्रमोटी अफसरों में कमी होना है। सच्चर रिपोर्ट के समय 7.1 प्रतिशत प्रमोटी आईपीएस मुस्लिम थे जो अब केवल 3.82 प्रतिशत हैं। साल 2001 की जनगणना के अनुसार मुस्लिम देश की आबादी का 13.43 प्रतिशत थे जो 2011 की जनगणना के बाद 14.2 प्रतिशत हैं। मुसलमानों की आबादी में 24.69 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वहीं मुसलमानों में लिंगानुपात बेहतर रहा है।

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