लेकिन धमतारी में इंडियन एक्सप्रेस को हकीकत कुछ और ही मिली। मोहदी गांव के मगरलोद ब्लॉक में रहने वाली 60 वर्षीय मनू बाई अपने एक कमरे के मकान से नीले रंग की प्लास्टिक की बोतल और एक छड़ी लेकर रात 7 बजे निकलती हैं। वह कहती हैं कि मुझे रात एेसा ही करना पड़ता है। मेरे घर में कभी टॉयलेट नहीं बना और न ही कोई अधिकारी इसके लिए मेरे घर आया। इस गांव में करीब 300 से ज्यादा मकान हैं और करीब 100 मकानों में शौचालय नहीं है। जिन मकानों में शौचालय हैं वह जर्जर हालत में हैं, जिनमें न तो पानी का कनेक्शन है और वह सीवेज पाइप से भी दूर हैं।
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में संथल ने बताया कि उनके घर में 20 दिन पहले ही टॉयलेट बना है। टॉयलेट के छेद में सीमेंट भरा है। लेकिन ज्यादा बड़ी समस्या बाहर है। इसके पाइप्स को जिस टैंक में रखा गया वह महज 3 फुट दूर है। संथल बताते हैं कि अगर हमने टॉयलेट को एक महीना भी इस्तेमाल किया तो सारा मल बाहर आ जाएगा। वहीं पप्पू सिन्हा ने एक अन्य तरीका निकाला है। अपने दो टॉयलेटों में उन्होंने फसल रखनी शुरू कर दी हैं, ताकि वह सूख सकें।
वहीं 48 वर्षीय युवराज साहू कहते हैं कि पिछले साल नगर पंचायत के अधिकारी उनके एक कमरे के मकान में आए थे और कहा था कि उनके घर में शौचालय बनाना असंभव है। इसके कुछ महीनों बाद कुछ ‘अफसरों’ ने उनसे एक टॉयलेट के आगे फोटो खिंचाने के लिए कहा, जो कई घर दूर था। जब वह फोटो अखबारों में छपा तो साहू अधिकारियों के पास पहुंचे और उन्होंने जब रिकॉर्ड्स चेक किए तो पाया कि उनका टॉयलेट बनाने में 12000 रुपये खर्च किए गए थे। वह कहते हैं कि एेसे कितने ही मामले हैं, लेकिन कौन सुने।