मंगलवार को ग्लोबल हंगर इंडेक्स, 2016 की रैंकिंग जारी हुई है, इस रैंकिंग के मुताबिक भारत में स्थिति काफ़ी गंभीर है, लेकिन क्या है ये ग्लोबल हंगर इंडेक्स?
क्या है ग्लोबल हंगर इंडेक्स?
अलग-अलग देशों में लोगों को खाने की चीज़ें कैसी और कितनी मिलती हैं यह उसे दिखाने का साधन है. ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ का सूचकांक हर साल ताज़ा आंकड़ों के साथ जारी किया जाता है. इस सूचकांक के ज़रिए विश्व भर में भूख के ख़िलाफ़ चल रहे अभियान की उपलब्धियों और नाकामियों को दर्शाया जाता है.
इस तरह के सर्वेक्षण की शुरुआत इंटरनेशनल फ़ूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने की और वेल्ट हंगरलाइफ़ नामक एक जर्मन स्वयंसेवी संस्थान ने इसे सबसे पहले वर्ष 2006 में जारी किया था. वर्ष 2007 से इस अभियान में आयरलैंड का भी एक स्वयमसेवी संगठन शामिल हो गया.
इस बार से रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावित 2030 के एजेंडे से भी जोड़ा गया है जिसमे ‘जीरो हंगर’ का लक्ष्य रखा गया है.
कैसे समझें ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ को?
‘ग्लोबल इंडेक्स स्कोर’ ज़्यादा होने का मतलब है उस देश में भूख की समस्या अधिक है. उसी तरह किसी देश का स्कोर अगर कम होता है तो उसका मतलब है कि वहाँ स्थिति बेहतर है.
इसे नापने के चार मुख्य पैमाने हैं – कुपोषण, शिशुओं में भयंकर कुपोषण, बच्चों के विकास में रुकावट और बाल मृत्यु दर.
कहाँ भूख से संघर्ष सबसे ज़्यादा?
भूख का जहाँ तक सवाल है तो ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि एशियाई देशों में सबसे ज़्यादा बुरी हालात पाकिस्तान और भारत की.
ये आंकड़े ऐसे समय में आए हैं जब कोझीकोड में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पकिस्तान के लोगों को बेरोज़गारी, कुपोषण, भूख और ग़रीबी से जंग लड़ने की चुनौती दी थी.
118 देशों की सूची में भारत 97वें स्थान पर है जबकि पकिस्तान 107 वें स्थान पर है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 39 प्रतिशत बच्चे अविकसित हैं जबकी आबादी का 15.2 प्रतिशत हिस्सा कुपोषण का शिकार हैं. इस सूचकांक में भारत का स्कोर 28.5 है. जो विकासशील देशों की तुलना में काफी अधिक है. सूचकांक में विकासशील देशों का औसत स्कोर 21.3 है.
भारत के दूसरे पड़ोसियों की स्थिति बेहतर है जो इस इंडेक्स में ऊपर हैं. मिसाल के तौर पर नेपाल 72वें नंबर है जबकि म्यांमार 75वें, श्रीलंका 84वें और बांग्लादेश 90वें स्थान पर है.