विदाई लेने से दो दिन पहले राजन ने एक भावुक और गंभीर भाषण दिया। इस भाषण के दौरान उन्होंने बेबाक अपनी बातें रखी। उन्होंने खुल कर कहा कि जो भी हुआ वो होना था, लेकिन आरबीआई के हाथ में हमेशा ‘ना’ कहने का अधिकार होना चाहिए।
राजन का सफर
भोपाल में जन्मे राजन ने अर्थशास्त्र की पढ़ाई की और इसमें ही विद्या हासिल करने के बाद उन्होंने बतौर प्रोफेसर अपना करियर शुरू किया और उसके बाद कॉरपोरेट में एंट्री ली। साल 2003 के सितंबर से जनवरी 2007 तक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में आर्थिक सलाहकार और अनुसंधान निदेशक (मुख्य अर्थशास्त्री) के रूप में बने रहे। जनवरी 2003 में अमेरिकन फाइनेंस एसोसिएशन द्वारा दिए जाने वाले फिशर ब्लैक पुरस्कार के प्रथम प्राप्तकर्ता थे। यह सम्मान 40 से कम उम्र के अर्थशास्त्री के वित्तीय सिद्धान्त और अभ्यास में योगदान के लिए दिया जाता है।
राजन ने भारत में होने वाले वित्तीय संकट की भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी। अप्रैल 2009 में, राजन ने द इकोनोमिस्ट के लिए अतिथि स्तम्भ लिखा जिसमें उन्होंने प्रस्तावित किया कि एक नियामक प्रणाली होनी चाहिए जो वित्तीय चक्र में होने वाले अप्रत्याशित लाभ को कम कर सके।
राजन के पुरस्कार
मिडल क्लास के मैन थे राजन
राजन ने अपने कार्यकाल में भले ही राजनेताओं को संतुष्ट नहीं किया, लेकिन आम लोगों के लिए उन्होंने इतने कम वक्त में बहुत काम किया। उन्हें मिडल क्लास का मैन कहा जाता है। क्योंकि वे एक मात्र ऐसे गर्वनर बने थे जिन्होंने उच्च वर्ग के टैक्स और अर्थव्यवस्था के बारे में नहीं सोचा बल्कि निम्न और मध्यम वर्ग के हिसाब से बैंक की स्कीम बनाई। राजन ने पॉलिसी में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं किए, लेकिन तीन साल की ग्रोथ बताती है कि अगर वे कुछ समय और बने रहते तो शायद भारत की अर्थव्यवस्था में भारी बदलाव हो सकता था।
बैंकों के दोस्त बने राजन
बैंक लोन और मुद्रास्फीति में राजन का कोई जवाब नहीं है। उन्होंने हर बार मौद्रिक नीति पर नए सिरे से काम किया। बैंकिंग सेक्टर में उन्होंने कई नई पहल की।उन्होंने आईएफडीसी और बंधन जैसे माइक्रोफाइनेंशियल शाखों को बैंक के रूप में खोलेन की घोषणा की। पिछले दो दशक में ऐसा पहली बार हुआ है।
बैंकों का कहना है कि उनकेकार्यकाल के दौरान ब्याज दर हमेशा ही न्यूनतम रही। जिसकी वजह से महंगाई पर बहुत ज्यादा कोई असर नहीं हुआ। सोशल मीडिया और राजनीति की ओर से उनपर खूब वाप हुए लेकिन उन्होंने कभी भी नकारात्मक रवैया नहीं अपनाया। उनकी सबसे अच्छी बात यही थी। उनपर बीते दिनों कई बार निजी हमले भी हुए, पीएम और वित्त मंत्री किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया। फिर भी उन्होंने अपना काम सही ढंग से किया। एक समझदार और संजीदा गर्वनर के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई।
स्मॉल फाइनेंस और एनपीए खोलने की योजना बनाई। पेटीएम और एयरटेल मशीन भी उनके दौर में बाजार में आई। राजन ने जब चार्ज लिया उस वक्त मुद्रास्फीति चरम पर थी, लेकिन उन्होंने सेंट्रल बैंक की नीतियों पर काम किया। हालांकि आज भी हम महंगाई से लड़ रहे हैं। वित्त मंत्री ने भी इस बात को माना है।
साल 2015 के नवंबर में उन्होंने एसेट क्वालिटी में सुधार किया। महराजन ने जब साल 2013 में ककाम संफभाला तब महंगाई 9 फीसदी थी और थोक महंगाई 7 फीसदी, लेकिन तीन साल के भीतर खुदरा महंगाई इस साल 4 के नीचे चली गई।
एक बात याद रखने की है कि उनके समय में रुपया खूब मजबूत हुआ। शेयर बाजार में भी ऐतिहासिक उछाल आया था। एक साल के अंदर रुपया 60 रुपए से ज्यादा मजबूत हुआ।
राजन एग्जिट पर क्यों मचा इतना हंगामा
राजन के एग्जिट पर पिछले कई महीनों से हंगामा मचा हुआ है। दरअसल, उनको इंडस्ट्री अनफ्रेंडली कहा गया है। निवेशक और ब्यापारी उनकी पॉलिसी से ज्यादा खुश नहीं थे। कहा जा रहा है कि यही उनके एग्जिट का कारण बना। पहले बीजेपी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने उनपर सवाल उठाए और फिर वित्त मंत्री और पीएम की खामोशी ने उन्हें कमजोर कर दिया।
लेकिन उन्हें बुद्धिजीवियों की खूब सराहना मिली और उनके काम पर उसका असर भी दिखा। राजन ने साफ कर दिया था कि वे कभी भी किसी बात से प्रभावित नहीं होंगे और ना ही किसी को खुश करने के लिए कोई गलत कदम उठाएंगे। सरकार से उनके संबंध भी कुछ खास अच्छे नहीं थे। उनके किसी भी फैसले या पॉलिसी पर सरकार की प्रत्यक्ष सहमति नहीं होती थी। लेकिन उनके दौरान आरबीआई पर सरकार का डाय़रेक्ट प्रभाव नहीं दिखा।
राजन की टिप्पणियां हमेशा ही विवादों में घिरी रही है। उन्होंने एक बार बयान दिया था मेरा नाम रघुराम राजन है, मैं जो कहता हूं वो करता हूं।