नई दिल्ली। बेशक 2014 से कंपनियों के बोर्डों में महिलाओं की संख्या बढ़ी है, लेकिन इनमें से करीब आधी या तो प्रमोटरों के परिवार का हिस्सा हैं या रिश्तेदार। यह नियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता के अभाव की तरफ इशारा करता है।
एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। फरवरी, 2014 में बाजार नियामक सेबी ने दिशानिर्देश जारी किए थे। इसमें कंपनियों को अनिवार्य रूप से अपने निदेशक मंडल में कम से कम एक महिला निदेशक को नियुक्त करने के लिए कहा गया था।
एनजीओ बिज डिवास फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में सूचीबद्ध कंपनियों में से अब सिर्फ 67 ऐसी हैं जिनमें महिला निदेशक नहीं हैं। इसका मतलब यह है कि नए नियमों का करीब-करीब शत प्रतिशत अनुपालन किया जा रहा है।
फाउंडेशन की हेड (बोर्ड प्रैक्टिस) रंजना देओपा ने कहा कि इस मामले में भारत की ग्लोबल रैंकिंग 2014 में 32वीं थी। यह सुधरकर आज 26वें स्थान पर पहुंच गई है। लेकिन अब भी काफी प्रगति की जानी है। खासतौर से यह देखते हुए कि नियुक्त की गईं करीब 50 फीसद महिला निदेशक प्रमोटरों की रिश्तेदार हैं। यह साबित करता है कि नियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है।
रिपोर्ट कहती है कि करीब 90 फीसद महिलाएं कंपनियों के बोर्ड में जगह पाने की इच्छा रखती हैं। रिक्तियों के बारे में सूचना और पहुंच का अभाव एक बड़ी चुनौती है। प्रतिक्रिया देने वाली ज्यादातर महिलाएं मेंटरिंग या
स्पॉन्सरशिप प्रोग्राम को सर्वोत्तम समाधान के तौर पर देखती हैं। वे मानती हैं कि ये प्रोग्राम उन्हें करियर में छलांग लगाने के लिए तैयार कर सकते हैं। रिपोर्ट में नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता अपनाने की जरूरत पर बल दिया गया है।