सीताफल के पल्प से मिठाई, छिलके से खाद और बीज से बनेगा शैंपू

धार। ब्यूरो। कृषि विज्ञान केंद्र आदिवासी अंचल के लोगों को सीताफल के उत्पादन के मामले में उद्योग से जोड़ने की कोशिश में है। सीताफल का जब अधिक उत्पादन होता है तो वह औने-पौने दाम में बिक जाता है। ऐसे में अब शहरों में आईसक्रीम, सीताफल शेक और कई मिठाइयों के लिए उसका पल्प तैयार करने की इकाई स्थापित करवाई जाएगी।

इतना ही नहीं सीताफल के छिलके को खाद के तौर पर उपयोग कर आदिवासी खुद के खेत में बेहतर उत्पादन ले सकें, ऐसे प्रयास किए जाएंगे। सीताफल के बीज को शैंपू बनाने की इकाई को उपलब्ध कराया जाएगा। इस तरह नालछा विकासखंड में सीताफल को स्वयं सहायता समूह के माध्यम से उद्योग से जोड़ने की कोशिश होगी।
कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी एसएस किराड़ ने बताया कि जिले में धामनोद, नालछा क्षेत्र में सीताफल का अधिक उत्पादन होता है लेकिन उसका व्यावसायिक स्तर पर लोगों को लाभ नहीं मिल पाता। स्वयं सहायता समूह के माध्यम से आदिवासी अंचल के लिए यह कवायद की जाएगी। एजेंसी की तलाश शुरू हो गई है।
सात लाख स्र्पए लगेंगे मशीन पर
-गुजरात से यह मशीन लाई जाएगी। इसकी कीमत करीब 7 लाख स्र्पए है।
-इसमें पल्पर, हार्डिनेस जैसी मशीनें शामिल रहेंगी।
-ट्रेनिंग देकर सीताफल का पल्प निकालना सिखाया जाएगा। इसमें फलों की ग्रेडिंग करना सिखाया जाएगा।
-पल्प सीताफल रबड़ी से लेकर कई मिठाइयां व आईसक्रीम में काम आता है।
छिलके का खाद तो बीज से शैम्पू
मशीन से छिलके से खाद तैयार होगा जो कि आदिवासी खुद अपने खेतों में उपयोग कर सकेंगे या पांच स्र्पए किलो तक में उसे बेच भी सकते हैं, जबकि बीज का उपयोग कई उद्योग शैंपू बनाने या कंडीशनर बनाने में करते हैं। इसलिए उसका भी यूनिट लगने पर फायदा होगा।
खास-खास
-500 हेक्टेयर में है सीताफल के पेड़।
– 40 से 50 हजार पेड़ होने का अनुमान।
-अक्टूबर-नवंबर माह में पांच हजार लोगों को मिलता है रोजगार।
-उद्योग लगने से आमदनी होगी करीब तीन गुना।

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