फूल के कांटे– चंद्रमोहन पपनैं

आजकल की गरमी में पंचफूली नामक सुंदर फूल-पौधे नोएडा के वीआइपी कहे जाने वाले इलाके सेक्टर 14-ए के पास स्थित गौतमबुद्ध की मूर्ति के ठीक सामने शोभायमान हैं। यहीं पर डीटीसी बस स्टॉप है और इसके बार्इं ओर एक बड़ा पार्क है, जिसमें बहुत सारे लोग सुबह-शाम की सैर करते हैं। इस मुख्य मार्ग से हजारों वाहन और लोग रोजाना आते-जाते हैं। वे पंचफूली नामक इन फूल-पौधों की सुंदरता को एक बार जरूर निहारते हैं। उद्यान विभाग ने कुछ समय पहले ही इन फूल-पौधों को इस स्थान पर लगाया है। इसके बाद ही इस इलाके में घूमने वाले आवारा मवेशियों का इस वाटिका के आसपास आना-जाना भी बंद हो गया है।

दरअसल, ऐसा इसलिए हुआ कि इन फूल-पौधों से ‘लैंटाना ए’ नामक रसायन की गंध उड़ती है, जो मवेशियों को नहीं भाती। इसके पत्ते विषैले होते हैं, जिन्हें खाकर मवेशी गंभीर रूप से बीमार पड़ सकते हैं। इससे यह भी हुआ कि उद्यान विभाग को मवेशियों से होने वाले नुकसान से निजात मिली और मालियों की बार-बार की निराई-गुड़ाई, खाद और सिंचाई की मेहनत भी बच गई। इस तरह विभाग का धन भी बचा, क्योंकि यह फूल-पौधा जमीन में अपनी जड़ों को गहराता जाता है और बिना खाद-पानी के भी फैलता जाता है। लेकिन इसका एक पहलू यह भी है कि उद्यान विभाग भूल गया कि इस इलाके से गुजरने वाले लोग अगर इस फूल-पौधे के संपर्क में आ गए तो उन्हें खुजली और मितली की शिकायत हो सकती है, स्वास्थ्य बिगड़ सकता है।

पंचफूली के हानिकारक गुणों के कारण ही हिमाचल और उत्तराखंड में इस फूल के पौधे को कुरी और छत्तियानाशी नामों से जाना जाता है। झाड़ीनुमा ‘बरवाने सी’ कुल का इस फूल-पौधे का वैज्ञानिक नाम ‘लैंटाना कैमरा’ है। इसमें सामान्य तौर पर पीला, सफेद, गुलाबी या क्रीमी फूल गुच्छे में खिलता है। यह फूल दिखने में बहुत सुंदर है। फूलों के इतिहास में दर्ज है कि यह फूल भारत में आस्ट्रेलिया से इसकी सुंदरता के कारण ही सन 1809-1810 में शोभाकार फूल-पौधे के रूप में लाया गया था।

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