सुबह के आठ बज रहे हैं. 72 साल के कल्लन तेज कदमों से गांव की मुख्य सड़क की तरफ बढ़ रहे हैं. हमसे मुलाकात करने की वजह से उन्हें काफी देर हो चुकी है. वे किसी भी हाल में मऊरानीपुर (झांसी जिले का एक कस्बा) जाने वाली पहली बस छोड़ना नहीं चाहते. कल्लन ऐन वक़्त पर बस स्टैंड पहुंचते हैं. एक मिनट की देरी उन्हें दो घंटे लंबे इंतजार की ओर धकेल सकती थी. अपने कंपकंपाते हाथों से वे बस के हैंडल को पकड़ते हैं और हमें अलविदा कहते हुए बस में सवार हो जाते हैं.
कल्लन बस के जरिए मऊरानीपुर के अंबेडकर चौराहे पर उतरेंगे. यहां उन्हें भीख मांगते हुए पांच साल का अरसा गुजर चुका है. अपने पांच सदस्यों के परिवार का गुजारा चलाने के लिए उनके पास आमदनी का यही एक जरिया है. इस पुरवे के दो दर्जन लोग हर सुबह पहली बस से मऊरानीपुर चले जाते हैं और कस्बे की गली-गली में घूम कर भीख मांगते हैं. इनमें से ज्यादातर बुजुर्ग और महिलाएं हैं.
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