‘मैं चेन्नई के बाढ़ से घिरे मेयो अस्पताल की बहुमंजिला इमारत के चौथे माले पर हूं। गुरुवार रात से पानी बढ़ रहा है। पानी बढ़ते-बढ़ते अब चौथे माले तक आ गया है। पिछले 36 घंटे के दौरान हम नवजात शिशुओं को लगातार ऊपरी मंजिलों में शिफ्ट करते रहे। मेरे साथ केवल दो नर्सें हैं।
हम कई नवजात बच्चों की जान बचाने में कामयाब रहे, लेकिन वेंटीलेटर बंद होने के कारण दम तोड़ रहे 14 गंभीर मरीजों के लिए कुछ नहीं कर सके। अस्पताल की बिजली पहले ही गुल हो चुकी थी। बाद में जनरेटर भी बंद हो गया। इसके चलते वेंटीलेटर, ऑक्सीजन सिलेंडर, मॉनिटर और जीवन रक्षक प्रणाली (लाइफ सपोर्टिंग सिस्ट) ने भी काम करना बंद कर दिया। टेलीफोन बंद हैं। मैं डॉक्टर होकर भी ऐसे में गंभीर मरीजों को अपनी आंखों के सामने मरते हुए देखने के सिवा कुछ नहीं कर सका। हमने स्थानीय प्रशासन से मदद मांगी, पर कोई मदद नहीं आई।
सेना बचाव कार्य कर रही है, पर उसकी प्राथमिकता बाढ़ में फंसे नागरिकों को बचाने की है। अस्पतालों में गंभीर मरीज अस्पताल के प्रबंधन और स्टाफ के भरोसे हैं। अपनों को मरते देख रहे परिजनों के चेहरे देखकर मैं सहम गया हूं। मैं तीन दिन से अस्पताल में ही हूं।
साथी डॉक्टर बाढ़ में फंसे होने के कारण अपने घर से अस्पताल तक नहीं पहुंच सके। बहुत से स्टाफ का भी यही हाल है। थोड़े बहुत स्टाफ के साथ हम जो कुछ कर सकते हैं कर रहे हैं।’ (डॉ. संजय भालेराव चेन्नई के मेयो अस्पताल की एनआईसीयू (नियो नेटल इंटेसिव केयर यूनिट) के प्रभारी हैं।)