9-10 नवंबर 2014 को नसबंदी शिविर में जिन 13 महिलाओं की जान गई उन्हें सिप्रोसिन के साथ-साथ आईबुप्रोफेन भी दी गई थी। स्वास्थ्य संचालनालय के एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने ‘नईदुनिया’ को बताया कि नसबंदी कांड के पहले ही आईबुप्रोफेन को जिलों से वापस करने निर्देश जारी किए गए थे, क्योंकि दवा स्तरहीन थी। कांड के बाद तो सारी दवाएं जब्त कर ली गई थी। शिविर से ड्रग इंस्पेक्टर द्वारा सिप्रोसिन और आईबुप्रोफेन की सैंपलिंग की गई थी।
जिन्हें जांच के लिए देश की अलग-अलग लैब में भेजा गया था, ये दोनों ही दवाएं अमानक करार दी गईं। इस पूरे मामले की जांच के लिए गठित अनिता झा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में दोनों दवाओं को विषाक्त करार दिया था। हालांकि दवाओं में जहर की किसी भी लैब ने पुष्टि नहीं की है।
नसबंदी कांड के पहले दिन से ‘नईदुनिया’ ने आईबुप्रोफेन की दवा निर्माता कंपनी पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा कार्रवाई न किए जाने को लेकर खबरें प्रमुखता प्रकाशित से प्रकाशित की और सवाल भी उठाए कि क्या कंपनी को बचाया जा रहा है? लेकिन अब एफआईआर दर्ज होने के बाद कंपनी पर शिकंजा कसेगा।
डीएचएस स्तर पर हुई थी 14 लाख की खरीदी-
आईबुप्रोफेन की खरीदी संचालनाल स्वास्थ्य सेवाएं (डीएचएस) द्वारा की गई थी। साल 2013 में 14 लाख रुपए की लागत से 1 करोड़ टेबलेट की खरीदी हुई थी, सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कंपनी को संचालनालय से पूरे एक करोड़ का भुगतान कर दिया गया था।
धोखाधड़ी का मामला दर्ज
स्वास्थ्य विभाग की तरफ से आईबुप्रोफेन दवा निर्माता कंपनी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवाई गई है। दवा अमानक थी, इसके आधार पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया है। जांच शुरू कर दी गई है। – जीतेंद्र ताम्रकार, थाना प्रभारी, राखी