खास तौर पर चमड़ा, इंजीनियरिंग उत्पाद, कपड़ा और रत्न व आभूषण जैसे क्षेत्रों में निर्यात घटा है, उसे देखते हुए इन क्षेत्रों में लाखों लोगों के रोजगार पर तलवार लटकने लगा है। निर्यातकों के संगठनों का कहना है कि उन्हें छोटी इकाइयों के बंद होने की खबरें लगातार मिल रही हैं।
केंद्र सरकार की तरफ से दो दिन पहले जारी आंकड़ों के मुताबिक सितंबर, 2015 में देश के निर्यात में 24.3 फीसद की गिरावट हुई है। वहीं, वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में यह गिरावट 17.6 फीसद की रही है।
निर्यातकों के संगठन फियो के पूर्व अध्यक्ष व चमड़ा निर्यातकों के परिषद (सीएलई) के अध्यक्ष रफीक अहमद का कहना है कि निर्यात में एक चौथाई फीसद की गिरावट किसी भी देश के लिए काफी चिंता की है। चूंकि निर्यात करने वाली कंपनियों में काफी ज्यादा रोजगार मिलता है, इसलिए साफ है कि ये कंपनियां ज्यादा दिनों तक रोजगार देने की स्थिति में नहीं है।
यह सूचना मिल रही है कि निर्यातक इकाइयों ने मांग नहीं होने की वजह से उत्पादन घटाना शुरू कर दिया है। निर्यातक सबसे पहले बाहरी काम करने वाले रोजगार को बंद करते हैं। बाद में वह सामान तैयार करने वालों की संख्या घटाते हैं। इसका असर निश्चित तौर पर रोजगार पर पड़ेगा।
अहमद कहते हैं कि हमारा पुराना अनुभव बताता है कि छोटी निर्यातक यूनिटें बंद होती हैं तो उनके लिए दोबारा बाजार में आना मुश्किल हो जाता है। रत्न व आभूषण निर्यातकों के संगठन जेजेईपीसी के अध्यक्ष विपुल शाह का कहना है कि पिछले कई महीनों से वैश्विक मांग न होने के बाद निर्यात घटा है, लेकिन हमारी यह कोशिश है कि रोजगार के अवसरों में कम से कम कटौती हो।
वैसे अब संकेत इस बात के हैं कि रत्न व आभूषण की मांग बढ़ेगी। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्पोर्टर्स ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के अध्यक्ष एससी रल्हान का कहना है कि अब तो पिछले वर्ष के बराबर भी निर्यात होने के आसार नहीं है।
पिछले दिनों वाणिज्य व उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने अधिकारियों और निर्यातकों की एक विशेष बैठक की। इसमें निर्यात घटने के परिप्रेक्ष्य में रोजगार पर पड़ने वाले असर की समीक्षा की गई।
सीतारमण को यह बताया गया कि चमड़ा और कपड़ा क्षेत्र में निर्यातक इकाइयों के बंद होने की लगातार सूचनाएं मिल रही हैं। कई विकासशील देशों के मुकाबले भारत में निर्यात में गिरावट की रफ्तार ज्यादा तेज है, जो ज्यादा चिंता की बात है।
इसके बाद यह फैसला किया गया है कि निर्यातक समुदाय को ब्याज में जल्द से जल्द से राहत दी जाए नहीं, तो बंद निर्यातक इकाइयों का ठीकरा आखिरकार सरकार के माथे ही फूटेगा। इस प्रस्ताव पर जल्द ही कैबिनेट की तरफ से फैसला होने की संभावना है।