मृगेंद्र पांडेय, रायपुर। छत्तीसगढ़ में किसानों के फसल बीमा में प्रीमियम की राशि में बीमा कंपनियों ने किसानों को जमकर चूना लगाया है। बीमा कंपनियों ने किसानों से उस जमीन का भी प्रीमियम वसूल लिया, जिस पर खेती ही नहीं की गई है।
बीमा कंपनियों ने किसानों की खाली जमीन पर भी धान की फसल खड़ी कर दी और हर एकड़ में दो हजार रुपए काट लिए। बीमा कपंनियों ने इस पूरे खेल को किसान क्रेडिट कार्ड को आधार बनाकर अंजाम दिया। मामले का खुलासा उस समय हुआ, जब किसानों ने सूचना के अधिकार में प्रीमियम की जानकारी मांगी। बीमा कंपनियों ने ऐसा करके प्रदेश के दस लाख से ज्यादा किसानों को नुकसान पहुंचाया है।
आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार किसानों ने किसान क्रेडिट कार्ड में अपनी पूरी जमीन दर्ज कराई। किसान ने खाद और बीज के लिए कर्ज लिया। सरकार ने नियम बनाया है कि जब कोई किसान कर्ज लेता है तो उसकी फसल का बीमा कराना अनिवार्य हो जाता है। बीमा कंपनियों ने इस कर्ज को आधार बनाकर प्रीमियम की राशि किसान केडिट कार्ड से काट ली।
बीमा कंपनियों ने इसकी जानकारी लेना उचित नहीं समझा कि किसान ने कितनी जमीन पर खेती की है। कंपनियों ने किसान की पूरी जमीन पर धान की खेती बताकर प्रीमियम दो हजार रुपए प्रति एकड़ काट लिया। वर्ष 2014 में धान की फसल बेचने सोसाइटी में पहुंचे किसानों से प्रीमियम की वसूली की गई तो उन्हें पता चला कि उनकी खाली जमीन पर भी बीमा कंपनियों ने धान लगा दिया है।
मुआवजे से ज्यादा काट लिया प्रीमियम
बीमा कपंनी ने कोरिया जिले के किसानों से धोखाधड़ी की। आरटीआई में मिली जानकारी के अनुसार कोरिया जिले के गांव लालपुर की किसान पार्वती के पास 23 हेक्टेयर जमीन है।
उसने सिर्फ 12 हेक्टेयर में धान की खेती की, लेकिन बीमा कंपनियों ने प्रीमियम के रूप में 46 हजार स्र्पए काट लिए। ऐसा ही बैजनाथ और नारायण के साथ हुआ। बैजनाथ के पास लगभग 10 हेक्टेयर जमीन है, लेकिन उसने धान सिर्फ डेढ़ हेक्टेयर में लगाया। उसका प्रीमियम तीन हजार रुपए होना चाहिए, लेकिन बीमा कंपनी ने 24 हजार स्र्पए काट लिए।
नारायण ने 15 हेक्टेयर जमीन में से सिर्फ साढ़े नौ हेक्टेयर में धान लगाया। उसका 30 हजार से ज्यादा प्रीमियम काटा गया। कोरिया जिले के गांव खैरबाना के विष्णु के साथ भी इसी तरह की गड़बड़ी हुई। उसने अपनी दस हेक्टेयर जमीन में से छह हेक्टेयर पर धान लगाया और उसका प्रीमियम 20 हजार स्र्पए काटा गया।
टर्मशीट की शर्तों का बीमा कंपनियों ने नहीं किया पालन
लोक प्रहरी रमाशंकर गुप्ता ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को पत्र लिखकर बीमा कंपनियों के द्वारा शर्तों के उल्लंघन की शिकायत की है। उन्होंने बताया कि फसल बीमा का क्रियान्वयन एक जुलाई 2014 से शुरू हुआ, जबकि योजना की अधिसूचना 30 जून 2014 को जारी की गई। ऐसे में कैसे संभव है कि बीमा कंपनी एक रात में प्रदेश के हर दस किलोमीटर में वर्षामापक यंत्र लगा देंगी।
उन्होंने बताया कि भारतसरकार की गाइड लाइन के अनुसार प्रीमियम में 25 फीसदी राशि किसान से और 75 फीसदी राशि राज्य सरकार को देनी है। लेकिन छत्तीसगढ़ शासन के अधिकारियों ने ऐसा नियम बनाया कि किसानों को 50 फीसदी प्रीमियम जमा करना पड़ रहा है।
इनका कहना है
फसल बीमा का बैंकों से सीधा लिंक है। कृषि के लिए कर्ज लेने वाले किसानों की फसल का बीमा अनिवार्य है। किसानों को यह समझना चाहिए कि बीमा नुकसान की भरपाई नहीं है और न ही मुआवजा है।
बृजमोहन अग्रवाल, कृषि मंत्री, छत्तीसगढ़
किसानों की पूरी जमीन का प्रीमियम लिया गया है, लेकिन धान खरीद पटवारी रिपोर्ट के आधार पर की गई। किसान ने जिस जमीन पर फसल लगाई ही नहीं, उसका भी बीमा कंपनियों ने प्रीमियम ले लिया। ऐसा प्रदेश के सभी जिलों में हुआ है। इसके साथ ही बीमा कंपनियों से जो शर्तें तय की गई थीं, उसे भी पूरा नहीं किया गया।
रमाशंकर गुप्ता, लोक प्रहरी