नई दिल्ली। मेक इन इंडिया की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 25 सितंबर को जोर-शोर से की थी। इसके तहत सरकार ने टारगेट रखा कि जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी 2022 तक 15 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी की जाएगा। इस टारगेट को पाने के लिए सरकार को मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में 13-14 फीसदी की ग्रोथ हासिल करनी है, लेकिन मेक इन इंडिया के पहले से साल में यह ग्रोथ औसतन 3 फीसदी पर बनी रही है। मेक इन इंडिया लॉन्च होने के बाद फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई) में इजाफा जरूर हुआ है लेकिन जमीन पर विदेशी और डोमेस्टिक कंपनियों की ओर से मैन्युफैक्चरिंग में खास तेजी नहीं आई। इतना ही नहीं, नोकिया और पॉस्को ने मेक इन इंडिया को झटका दिया है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अर्थशास्त्री डी. के. जोशी ने मनी भास्कर को बताया कि जिस मेक इन इंडिया की बात सरकार कर रही है उसके लिए मैन्युफैक्चरिंग की ग्रोथ कम से कम 13 से 14 फीसदी होनी चाहिए। अगर रिफॉर्म में तेजी नहीं आई तो इस ग्रोथ को हासिल करने में 10 साल तक का वक्त लग सकता है। उन्होंने कहा कि भारत में अभी भी मोबाइल इक्यूप्मेंट जैसे मोबाइल हैंडसेट की मैन्युफैक्चरिंग नहीं हो रही है।
एमएसआईपीएस के तहत सब्सिडी देती है सरकार
मॉडिफाइड स्पेशल इंसेंटिव पैकेज स्कीम (एमएसआईपीएस) पूंजी खर्च में किए गए इन्वेस्टमेंट पर सब्सिडी उपलब्ध कराती है, जो स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एसईजेड) में इन्वेस्टमेंट पर 20 फीसदी और नॉन-एसईजेड के लिए 25 फीसदी है। यह नॉन-एसईजेड यूनिट्स को कैपिटल इक्विपमेंट के लिए काउंटरवेलिंग ड्यूटी या एक्साइज पर प्रतिपूर्ति भी उपलब्ध कराती है। इसके अलावा सरकार इलेक्ट्रॉनिक चिप मैन्युफैक्चरिंग के लिए रिसर्च पर होने वाले खर्च पर 200फीसदी की कटौती की अनुमति दे रही है।
ईज ऑफ डूइंग पर हुआ काम
सरकार ने ईज ऑफ डूइंग के लिए की दिशा में खासा काम किया है। ई-बिज पोर्टल के माध्यम से 24 घंटे ऑनलाइन औद्योगिक लाइसेंस और इंडस्ट्रियल आंत्रप्रेन्योर मेमोरेंडम (आईईएम) फाइल करने की व्यवस्था की है, जो सरकारी मंजूरियों के लिए सिंगल विंडो पोर्टल के रूप में काम करता है। इसके साथ ही पर्यावरण और अन्य मंजूरियों की रफ्तार तेज हुई है, लेकिन परियोजनाओं के कार्यान्वयन की रफ्तार सुस्त हुई है। इसके अलावा, एक्सपोर्ट और इंपोर्ट को आसान करने के लिए अनिवार्य डॉक्यूमेंट की संख्या घटा दी गई है। इसके अलावा, कारोबारियों को दस्तावेज डिजिटल तरीके से स्टोर करने की मंजूरी दे दी है।
12 माह में 1.10 लाख करोड़ के प्रपोजल
एफआईपीबी की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, 24 अक्टूबर से 25 अगस्त तक कुल 188 एफडीआई प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है। वहीं, मेक इन इंडिया के तहत बीते 12 माह में करीब 1.10 लाख करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट प्रपोजल मिले है। इसमें एयरबस, एलजी, थामसन, फिलिप्स जैसी कंपनियों के प्रपोजल भी शामिल हैं।
एफडीआई का इनफ्लो बढ़ा
डीआईपीपी की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, सितंबर 2014 से जून 2015 तक करीब 1.77 लाख करोड़ रुपए का एफडीआई का इनफ्लो हुआ है।पिछले साल की तुलना में यह आंकड़ा 48 फीसदी बढ़ा है।