आमतौर पर माना जाता है कि अगर तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाए तो इसे हीटवेव या लू की श्रेणी में रखा जा सकता है, क्योंकि यह सामान्य तापमान से 4 या 5 डिग्री अधिक होता है। अगर यह बढ़कर 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाए तो इसे भीषण गर्मी की स्थिति माना जा सकता है। इतने तापमान पर गर्मी के असर से बीमार पड़कर जान गंवा देने का जोखिम बहुत बढ़ जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि भीषण गर्मी की यह स्थिति अचानक निर्मित हो गई हो और इसका कोई पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं था। भारत का मौसम विभाग गत चार वर्षों से लू का सटीक पूर्वानुमान लगाने का प्रयास करता आ रहा है। जलवायु परिवर्तन पर इंटरगवर्नमेंटल पेनल (आईपीसीसी) की एक विशेष रपट में बताया गया है कि आने वाले समय में लू का खतरा और बढ़ेगा, और खासतौर पर शहरों को इसका सामना करना पड़ेगा। सेंट्रल हिमालयन एनवायरमेंट एसोसिएशन (सीएचईए) द्वारा हाल ही में देहरादून में आयोजित फिफ्थ असेसमेंट रिपोर्ट आउटरीच इवेंट में भी यही संकेत किया गया था कि आने वाले समय में शहरों को और भीषण गर्मी के खतरे का सामना करना पड़ेगा।
दक्षिण एशिया के शहरों में पिछले कुछ समय से जलवायु परिवर्तन के चलते यह स्थिति निर्मित हो रही है कि गर्मियों के दिनों में तापमान बहुत बढ़ जाता है। वर्ष 2010 में अहमदाबाद में ही भीषण गर्मी के कारण 1300 लोगों की मौतें हो गई थीं। जाहिर है, गर्मी से दम तोड़ने वाले लोगों में वे ज्यादा थे, जिन्हें गर्मी का सबसे ज्यादा सामना करने को मजबूर होना पड़ा, जैसे खुले में काम करने वाले मजदूर, झुग्गियों में रहने वाले लोग। इनके साथ ही बच्चे और बूढ़े भी इसकी चपेट में ज्यादा आए। लू का असर शहरी बेघरों, भिखारियों, स्ट्रीट वेंडरों, हॉकरों और यातायात पुलिस के जवानों पर कितना होता है, इसका अनुमान लगाया जाना अब भी शेष है। अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) के स्वास्थ्य विभाग की टीम ने भारतीय लोकस्वास्थ्य संस्थान और प्राकृतिक संसाधन सुरक्षा परिषद की टीमों के साथ तीन साल तक काम करके भारत ही नहीं, बल्कि एशिया का पहला हीटवेव एक्शन प्लान बनाया था। इस कार्ययोजना में उन कार्रवाइयों को सम्मिलित किया गया है, जिनका पालन कर नागरिक, निजी-सार्वजनिक संस्थाएं और नीति निर्माता लू के दुष्प्रभाव को कम कर सकते हैं। इससे अहमदाबाद में लू के दुष्प्रभावों को वाकई नियंत्रित किया जा सका है।
इसमें बड़ी सरल-सी बातें भी शामिल हैं, जैसे कि गर्मियों के दिनों में अधिक पानी पीना औरयथासंभव छाया में रहना, लेकिन सवाल उठता है कि क्या हमारे शहरों में पेयजल और शेड्स का पर्याप्त प्रबंध है भी? एएमसी द्वारा एक्शन प्लान की अनुशंसाओं पर कार्रवाई करते हुए जो तैयारियां की गई थीं, उसमें खास ध्यान रख गया था कि लोकस्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को कैसे सुधारा जाए। मसलन, एंबुलेंस सुविधाओं को उन जगहों पर केंद्रित करना, जहां मदद की जरूरत ज्यादा होती हो। तापमान बढ़ने पर अस्पतालों को पूर्वसूचना देना, ताकि वे अतिरिक्त आइस पैक्स का बंदोबस्त कर सकें। साथ ही शहर में अधिक पेयजल केंद्रों का निर्माण करना व लोगों में जागरूकता लाने के लिए संबंधित साहित्य का वितरण करना।
देश के हर शहर को इसी तरह एक हीट-एक्शन प्लान बनाते हुए चार बिंदुओं पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। पहला, नागरिकों को भीषण गर्मी से होने वाले खतरों के बारे में सचेत करना और इसके लिए संचार के परंपरागत साधनों के साथ ही एसएमएस और वाट्सएप का उपयोग करना। दूसरा, लू की स्थिति में विभिन्न् सरकारी एजेंसियों के लिए चेतावनी की एक प्रणाली विकसित करना, जिसके चलते महत्वपूर्ण विभागों के अधिकारियों और इकाइयों को यह स्पष्ट रहे कि उन्हें कब-क्या करना है। तीसरा महत्वपूर्ण कदम है स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों को भीषण गर्मी से होने वाली बीमारियों के संबंध में बेहतर प्रशिक्षण प्रदान करना। और चौथा कदम है शहरों में गर्मियों की स्थिति का सामना करने के लिए बेहतर सुविधाओं का बुनियादी ढांचा तैयार करना।
इसके लिए हम अंतरराष्ट्रीय मानकों से सबक ले सकते हैं। वर्ष 2003 में जब फ्रांस में भीषण गर्मी के कारण 15 हजार लोगों की मौत हो गई थी तो वहां की सरकार ने एक हीट हेल्थ वॉच वॉर्निंग सिस्टम विकसित किया। कुछ अध्ययनों में बताया गया कि वर्ष 2006 में जब फ्रांस में ऐसी ही भीषण गर्मी की स्थिति निर्मित हुई तो इस प्रणाली के चलते ही कोई 4400 लोगों की जान बचाई जा सकी। हाल ही में दिल्ली में हुई साउथ एशिया सिटी समिट में उपस्थित 40 से अधिक मेयर ने अहमदाबाद के हीटवेव प्लान में दिलचस्पी दिखाई थी। यूएन हैबिटेट, सिटीज नेटवर्क कैम्पेन और क्लाइमेट एंड डेवलपमेंट नॉलेज नेटवर्क (सीडीकेएन) द्वारा आयोजित इस समिट में अंत में कहा गया कि अन्य शहरों में भी अहमदाबाद जैसी ही तैयारियां किए जाने की जरूरत है, क्योंकि सही मायनों में एक स्मार्ट सिटी उसे ही कहा जा सकता है, जो कि लू से सुरक्षित शहर हो।
दुनियाभर के शहरों में इस तरह की स्थितियों से जूझने के लिए पहले से ही तैयारी दिखाई जाती है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है हरियाली और छांव के लिए सड़कों के किनारे वृक्ष लगाना। साथ ही भवन निर्माण में शेड वॉल्स और खिड़कियों का निर्माण सुनिश्चित करना और यातायात पुलिस, सफाईकर्मियों आदि को ड्यूटी के दौरान बेहतर सुविधाएं मुहैया कराना। ऐसा नहीं है कि भारतीय शहरों में ऐसा नहीं होता, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर नहीं, जिनकी मदद से लू की लपटों का सामना किया जा सके।
आपदाओं से हम सबक भी ले सकते हैं। विश्व की पांच सबसे भीषण लू-आपदाओं में से दो भारत में आई हैं और इसीलिए समय आ गया हैकिअब इसे गंभीरता से लेते हुए इसके संबंध में एक व्यापक राष्ट्रीय नीति बनाई जाए।
(लेखक अखिल भारतीय आपदा निवारण संस्थान (एआईडीएमआई) के संस्थापक-संचालक हैं