फसल बीमा दावे का निपटारा 45 दिन में होगा- अरविन्द सिंह

केंद्र सरकार ने बीमा कंपनियों को बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि में बर्बाद हुई फसलों के बीमा दावे का निपटारा 45 दिन में करने का निर्देश दिया है, जिससे किसानों को जल्द राहत पहुंचाई जा सके। लेकिन देश के 80 फीसदी किसान फसल बीमा योजना के दायरे से बाहर हैं। इसलिए उन्हें आर्थिक लाभ नहीं मिलेगा। किसानों की इस दुर्दशा के लिए बीमा दावे के नियम व राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं।

कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने पिछले साल संशोधित राष्ट्रीय कृषि आय बीमा योजना लागू करने की घोषणा की थी। यह बाजार आधारित योजना है जिसमें निजी क्षेत्र की सहभागिता से लागू किया जाएगा। मौजूदा कृषि बीमा योजनाओं की अपेक्षा नई योजना से समयबद्ध दावा निस्तारण होगा। सूत्रों का कहना है कि नई संशोधित राष्ट्रीय कृषि आय बीमा योजना व मौसम आधारित कृषि बीमा योजना को कंपोनेंट स्कीम (केंद्र व राज्य की सहभागिता से) के तौर पर लगाया गया है।

जिससे किसानों को उपज से होने वाली आय का 50 फीसदी बीमा के रूप में मिल सके। लेकिन राज्यों ने केंद्र सरकार की नई कृषि आय बीमा योजना का विरोध कराना शुरू कर दिया है। उनका तर्क है कि वह पुरानी राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना को ही लागू करेंगी। इसके चलते केंद्र की संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना को पूरी तरह से लागू नहीं हो पा रही है। कृषि मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि राज्य अपनी सुविधा के मुताबिक नई अथवा पुरानी कृषि बीमा योजना को लागू कर सकते हैं। ध्यान देने की बात यह है कि पंजाब, हरियाणा ने दो साल पहले फसल बीमा योजना को बंद कर दिया है। जबकि उत्तर प्रदेश के चुनिंदा जिलों में ही बीमा योजना लागू है। एसोचैम व स्काईमेट वेदर की शनिवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के सिर्फ 19 फीसदी किसान फसल बीमा योजना में शमिल हैं। यानी 80 फीसदी किसान सरकार की फसल बीमा योजना के दायरे से बाहर हैं।

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एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक 80 फीसदी किसान मौसम के रहम पर खेतीबाड़ी करते हैं। प्राकृति आपदा जैसे बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि, बाढ़, सूखा आदि पड़ने पर उन्हें फसल बीमा का कोई लाभ नहीं मिलता है। बीमा नहीं कराने वाले 46 फीसदी किसान फसल बीमा की जानकारी रखते हैं, लेकिन उनकी इसमें रुचि नहीं है। वहीं, 24 फीसदी किसान फसल बीमा की जानकारी नहीं है। जबकि 11 फीसदी बीमा क प्रीमियम देने में असमर्थता जताते हैं।

राज्य सरकारों के फसल बीमा योजना के अजीबो गरीब नियमों के कारण किसान इससे दूरी बनाए हुए हैं। कुछ राज्यों में प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, ओलावृष्टि, तूफान, भू-स्खलन, सूखा आदि पड़ने पर ब्लाक स्तर पर असर होने पर बीमा का क्लेम दिया जाता है। जबकि कई राज्य तालुका स्तर पर इसका असर होने पर किसानों को बीमा क्लेम देते हैं। इसमें हजारों गांव शामिल होत हैं। ब्लाक-तालुका के कुछ हिस्सों (सैकड़ों गांव) प्राकृतिक आपदा आती है तो किसानों को फसल बीमा क्लेम नहीं दिया जाता है। यानि जिलों में बड़े सामूहिक रूप से फसलों के प्रभावित होने पर किसानों को फसल बीमा का लाभ मिल पाता है। इस विसंगति केकारण किसान फसल बीमा कराने से दूर भागते हैं।

प्राकृतिक आपदा होने पर बीमा कंपनियां किसानों की पिछले दस साल की उपज व आय का औसत आकंलन करती हैं। इसके आधार पर बीमा क्लेम तय किया जाता है। बीमा कंपनियां विभिन्न फसलों के मुताबिक किसानों से 1.5 से 3.5 फीसदी प्रीमियम वसूलती हैं। इसके बावजूद किसानों को पूरा क्लेम नहीं मिल पाता है।

फसल बीमा योजना में क्लेम का 33 फीसदी हिस्सा बीमा कंपनी देती है। जबकि शेष राशि का 50:50 फीसदी हिस्सा राज्य सरकारें व केंद्र सरकार बीमा कंपनियों को सब्सिडी के रूप में देती हैं। इसलिए अधिकांश राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना को लागू करने से कन्नी काटती हैं।

बीमा कंपनियां प्राकृतिक आपदा की जानकारी रेडियो, अखबारों, टेलीविजन आदि से प्राप्त करती हैं। उनके पास अपनी कोई मशीनरी नहीं होती है जिससे वह पता लगा सकें कि देश के किस हिस्से में प्राकृतिक आपदा का प्रकोप कितना हुआ है। कंपनियां फसलों के नुकसान की जानकारी के लिए लेखपाल, कृषि अधिकारी पर निर्भर रहते हैं। प्रीमियम लेने वाले किसानों से उनका कोई संपर्क नहीं होता है।

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