क्या है प्लानिंग
मध्यप्रदेश सरकार ने शुरुआती दौर में सरकारी इमारतों की छत में सोलर प्लांट लगाने की तैयारी की है। जबलपुर समेत प्रदेश के चार बड़े शहरों में इस योजना को लागू किया है। इमारतों पर सोलर प्लांट लगाकर बिजली का उत्पादन होगा। संस्थान जरूरत की बिजली उपयोग करेगा और एक्स्ट्रा बिजली सेल कर दी जाएगी।
यहां लगा प्लांट
जबलपुर में जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज और सेंट्रल जेल में 10-10 किलोवाट के सोलर प्लांट लगाए गए हैं। शहर की करीब डेढ़ दर्जन सरकारी इमारतों में 2.5 मेगावाट क्षमता के सोलर प्लांट लगाने का लक्ष्य तय है। इससे जुड़े सर्वे का काम भी पूरा हो चुका है।
कैसा है ड्राफ्ट
विद्युत नियामक आयोग ग्रिड कनेक्टेड नेट मीटरिंग अधिनियम 2014 को तैयार कर रहा है। प्रारंभिक स्तर पर आयोग ने आमजन के सुझाव मांगे हैं। इसमें छोटे स्तर पर बिजली उत्पादन सोलर, बायोगैस या विंड किसी तरह की एनर्जी को बेचने के नियम-कायदे बनेंगे। जहां पर बिजली तैयार होगी वहां से ग्रिड के जरिए सप्लाई देकर एनर्जी को भेजा जाएगा। इसके लिए बिजली बेचने वाली संस्था के पास लाइसेंस होना जरूरी होगा।
लागत महंगी, उत्पादन सस्ता
सोलर प्लांट लगाने की लागत अपेक्षाकृत महंगी होती है, लेकिन बिजली का उत्पादन बेहद सस्ता होता है। आमतौर पर घरों में एक या दो किलोवाट का प्लांट लगता है। प्रति किलोवाट प्लांट लगाने की लागत करीब 1.35 लाख रुपए आती है। नवीन एवं नवीनीकरण ऊर्जा विभाग के प्रवीण तिवारी ने बताया कि सोलर ऊर्जा के जरिए चार साल के भीतर घर में उत्पादन फ्री हो जाएगा।
1.2 मेगावाट का बायोगैस प्लांट
प्रदेश में अपने स्तर का इकलौता बायोगैस प्लांट जबलपुर में है। परियट में स्थित इस प्लांट से 1.2 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। विद्युत कंपनी बिजली को खरीद रही है। अधिनियम बनने के बाद ऐसे सभी प्लांट लाइसेंस लेने के बाद ही बिजली बेच पाएंगे।
छतों पर सोलर प्लांट लगता है। डिमांड से ज्यादा प्रोडक्शन होने पर ग्रिड से कनेक्ट कर बिजली बेची जा सकती है। इसके लिए लाइसेंस लेना होगा। इसका ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है। सुझाव मांगे गए हैं। इसी तरह बायोगैस पॉवर प्रोजेक्ट की दर निर्धारित करने के लिए भी सुझाव मांगे गए हैं। -आरके गुप्ता, डायरेक्टर (एल एंड आर) मप्र विद्युत नियामक आयोग, भोपाल