सेजबहार के किसान जितेंद्र वर्मा ने 44 एकड़ में धान की फसल ली है। 12 एकड़ खुद की जमीन और 32 एकड़ रेघा में। 22 क्विंटल प्रति एकड़ धान पैदा करने वाले इस किसान ने अन्य खातेदारों से 10 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से धान देने की शर्त पर जमीन लेकर खेती की। खेती के लिए खाद, बीज और दवा आदि के लिए 3 लाख स्र्पए सोसाइटी से कर्ज ले रखा है। 10 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से धान खरीदी का सरकारी फैसला इन पर पहाड़ बनकर टूटा है।
सोसाइटी में वे केवल अपने हिस्से की 12 एकड़ जमीन का 120 क्विंटल धान बेच पाएंगे। इससे उन्हें 1 लाख 63 हजार स्र्पए की राशि मिलेगी, जिससे लिया गया कर्ज आधा ही जमा हो पाएगा। बाकी कर्ज कैसे छूटेंगे और साल भर घर किस तरह चलेगा, इस बात को लेकर वे खासे चिंतित हैं। श्री वर्मा ने बताया कि पिछली बार उनके खातेदारों ने उनका धान अपने खाते से बेचकर उन्हें राशि दे दी थी, क्योंकि सरकार पूरा धान खरीद रही थी।
इस बार खातेदारों ने अपने खाते से धान बेचने से इंकार कर दिया है। वे श्री वर्मा के द्वारा रेघा के बदले दिए गए धान बेचेंगे। प्रति एकड़ 12 क्विंटल के हिसाब से 528 क्विंटल धान उन्होंने मिसाई कर खलिहान में डंप कर दिया है, क्योंकि मंडी में धान का रेट टूट गया है और उन्हें अपने धान की सही कीमत नहीं मिल रही है।
केवल कर्ज ही चुका पाएंगे
दतरेंगा के किसान घनाराम साहू इस बार सोसाइटी में धान बेचकर केवल कर्ज ही चुका पाएंगे। उन्होंने पांच एकड़ में धान की फसल ली है। करीब 18 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से धान हुआ है। फसल लेने के लिए घनाराम ने करीब 50 हजार स्र्पए कर्ज लिए हैं। वहीं खाद के लिए सोसाइटी से 15 हजार का कर्ज अलग चढ़ गया। सोसाइटी में धान बेचकर केवल कर्ज ही छूट पाएंगे। बचे हुए धान का उन्हें रेट नहीं मिल रहा है, इसलिए उन्होंने धान खलिहान में डंप करने का इरादा कर लिया है।