सरकार गर्भपात की सीमा 24 हफ्ते करने को तैयार

मुंबई। भारत सरकार ने गर्भपात कराने की समय सीमा मौजूदा 20 हफ्तों से बढ़ाकर 24 हफ्ते करने का प्रस्‍ताव दिया है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) बिल, 2014 के मसौदे को स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय की वेबसाइट पर 29 अक्‍टूबर को पेश किया गया।

इस बिल के मसौदे में कहा गया है कि यदि गर्भवती महिला के जीवन को कोई खतरा हो, यदि उसके शारीरिक या मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को कोई खतरा हो या इस बात का जोखिम हो कि जन्‍म लेने वाला बच्‍चा किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त रहेगा, तो 24 हफ्तों के अंदर गर्भपात किया जा सकता है।

अबॉर्शन कानून में संशोधन पर ‘नैतिकता बनाम चिकित्सा’

मसौदे में यह भी कहा गया है कि यदि भ्रूण में किसी गंभीर अनियमितता का पता चलता है, तो किसी भी स्‍टेज में गर्भपात किया जा सकता है। डॉक्‍टर निखिल दातार ने बताया कि इसका अर्थ यह है कि यदि 24 हफ्तों के बाद भी भ्रूण में किसी विकृति का पता चलता है, तो गर्भावस्‍था को खत्‍म किया जा सकता है। निखिल की मरीज निकेता मेहता ने इस बिल में बदलाव की मांग की थी।

कोर्ट ने नहीं दी दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात की इजाजत

डॉक्‍टर ने बताया कि उन्‍हें याद है कि वर्ष 2008 में मुंबई की रहने वाली निकेता मेहता ने भ्रूण में के हृदय में विकृति पाए जाने के बाद अपनी 20 हफ्तों से अधिक की गर्भावस्‍था को खत्‍म करने के लिए बॉम्‍बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

विदेशों में क्या है नियम?

ब्रिटेन में 24 हफ्तों तक गर्भपात की अनुमति है। वहीं अमेरिका में इसके बाद तक की छूट प्रदान की गई है। स्पेन ने यह अवधि 22 हफ्तों की रखी गई है।

जर्मनी, रोमानिया, आयरलैंड, बेल्जियम, पुर्तगाल, ऑस्ट्रिया, पोलैंड, स्वीडन, लक्जमबर्ग और हंगरी जैसे यूरोपीय देशों में गर्भधारण के 12 हफ्तों बाद गर्भपात गैरकानूनी है।

उक्त प्रत्येक देश के करीब 30,000 महिलाएं हर साल यूके या स्पेन जाकर गर्भपात करती हैं।

खास बात यह भी है कि इन दोनों देशों में गर्भपात के लिए पति की अनुमति अनिवार्य नहीं है।

आंकड़ों में यह स्थिति

2.60 करोड़ बच्चे जन्म लेते हैं हर साल भारत में।

2-3 फीसद शिशु भीषण जटिलताओं के साथ पैदा होते हैं।

47 हजार महिलाओं की मौत होती है दुनियाभर में गर्भपात के दौरान।

86 फीसद गर्भपात विकासशील देशों में होते हैं, जहां सख्त कानून है।

4 माह बाद अबॉर्शन हराम : फतवा

इस्लाम में भ्रूण हत्या के खिलाफ बहुत सख्ती है। 2011 में दारुल उलूम देवबंद ने फतवा जारी कर कहा था कि तीन से चार महीने के भ्रूण में अल्लाह रूह डाल देता है और ऐसे में अबॉर्शन कराना हराम है, भले ही भ्रूण के अंग अविकसित ही क्यों न हो। दरअसल, देवबंद से पूछा गया था कि यदि तीन से चार महीने के भ्रूण में मस्तिष्क अविकसित पाया गया, तो क्या अबॉर्शन की अनुमति है? इसका जवाब देतेहुए यह फतवा जारी किया गया। कहा गया कि 4 माह के पहले जब तक भ्रूण में जान नहीं होती, मजबूरी की स्थिति में अबॉर्शन कराया जा सकता है।

सविता ने दिलाई थी आयरलैंड में गर्भपात को मान्यता

भारतीय मूल की दंत चिकित्सक 31 साल की सविता हलप्पनवर की अक्‍टूबर 2012 में समय पर गर्भपात न होने के कारण मौत हो गई थी। इसके बाद आयरलैंड में बहस छिड़ गई कि क्यों न विशेष परिस्थितियों में गर्भपात की संवैधानिक इजाजत दी जाए। इस मुद्दे पर कैथोलिक मान्यता वाले इस देश के लोगों की तरह ही सांसदों में भी काफी मतभेद सामने आए। यहां तक कि एक मंत्री ने अपने पद से त्यागपत्र भी दे दिया था।

बड़ी संख्या में लोग प्रदर्शन करते हुए सड़कों पर उतरे। आखिरकार वहां की संसद ने दो दिन की लंबी बहस के बाद विशेष परिस्थितियों में गर्भपात को मान्यता दे दी है। 31 के मुकाबले 127 मतों से पारित ‘गर्भ के दौरान जीवन रक्षा विधेयक’ में कहा गया है कि जब डॉक्टरों को ऐसा लगता है कि किसी महिला की जान खतरे में है तो वह उसकी जान बचाने के लिए गर्भपात कर सकता है।

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